क्या मेजर मनकोटिया की बराबरी कर पाएगी सरवीन चौधरी?

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आवाज ए हिमाचल

घुमन्तु की कलम से… 

जीत का चौका लगाने के लिए आतुर सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री सरवीन  चौधरी क्या पूर्व मंत्री मेजर विजय सिंह मनकोटिया की बराबरी कर पायेगी, इस पर लोगों की नजरें टिकी हुई हैं। सरवीन लगातार तीन विधानसभाई चुनाव 2007, 2012 तथा 2017 फतेह कर जीत का तिक्का लगा चुकी हैं।

हालांकि, सरवीन  1998 का चुनाव भी जीती थीं, जबकि मेजर 1982, 1985, 1990 तथा 1993 का चुनाव लगातार जीत कर चौका लगा चुके हैं। यदि इस बार सरवीन चुनाव जीतती हैं तो वह मनकोटिया की लगातार चार बार तथा कुल पांच चुनाव जीतने की बराबरी कर लेंगी। पर क्या इस बार सरवीन चुनाव जीतेंगी? यह प्रश्न राजनैतिक गलियारों में उठने लगा है। उनकी अपनी ही पार्टी में विरोधी तो दावे के साथ इस बात को भी हवा दे रहे हैं कि सरवीन को इस बार पार्टी टिकट देने वाली नहीं है क्योंकि उन पर कई तरह के आरोप लगे हुए हैं।

हालांकि, उन पर लगे आरोपों को न तो सरकार और न ही संगठन ने आज तक गम्भीरता से लिया है। सरवीन को हमेशा शाहपुर कांग्रेस की अंतर्कलह का लाभ मिलता रहा है अन्यथा पिछले चुनावों का विश्लेषण किया जाए तो सरवीन ने 2007 तथा 2012 में 25-25 हजार के लगभग वोट लिए तो 2017 में 23 हजार के करीब मत मिले जबकि, मतदाताओं की संख्या बढ़ी और मतदान भी अधिक हुआ थ। 2017 में कांग्रेस के अधिकृत प्रत्याशी तथा कांग्रेस छोड़ मैदान में उतरे मेजर मनकोटिया के मतों का जोड़ देखें तो यह करीब 33 हजार था जो सरवीन को मिले कुल मतों से लगभग 10 हजार अधिक था। ऐसे में यदि कांग्रेस एकजुटता के साथ चुनाव लड़े तो सरवीन  की राहें कठिन हैं। भाजपा में भी उनके विरोधी सिर उठाए हुए हैं।

प्रदेश व राष्ट्रीय नेताओं के साथ सम्बन्धों के बल पर कुछ भाजपाई तो टिकट के दावे भी करने लगे हैं। हालांकि, धरातल पर शून्य के बराबर इन नेताओं को टिकट मिले या न मिले परन्तु इन्हें सरवीन की उम्मीदवारी मंजूर नहीं होगी। भाजपा मंत्री पर कुछ चहेतों से घिरे रहने तथा निष्ठावान व धरातल से जुड़े कार्यकर्ताओं की अनदेखी के आरोप भी अक्सर लगाए जाते हैं, यही वजह है कि जैसे जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं भाजपा के कई वर्कर खामोश होने लगे हैं।

सोशल मीडिया पर कुछ भाजपाई जहां अपना गुब्बार निकालते देखे जा सकते हैं तो वहीं मतदाता भी मंत्री से सम्बंधित अनेक पोस्ट पर अपने कमेंट डाल उन्हें नसीहत देने से नहीं चूकते, लेकिन यह भी सच्च है कि सरवीन चौधरी भाजपा की एक मजबूत उम्मीदवार है तथा उनकी टिकट कटना मुश्किल है, लेकिन इस सच्चाई से भी मुंह मोड़ा नहीं जा सकता है कि इस चुनाव में अगर कांग्रेस एकजुट होकर चुनाव लड़ी तो सरवीन की राहें इतनी आसान भी नहीं है।

खैर कुछ भी कहा जाए शाहपुर की जनता इस बार किसे सर माथे पर बैठाती है यह तो आने वाले समय में ही पता चलेगा, लेकिन इन दिनों गली चौराहों में जनता -अपने अपने तरीके से चुनावी आंकलन करती जरूर दिख रही है।

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