ज्वाली की काव्या ने एक ऊँगली से रचा इतिहास

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आवाज़ ए हिमाचल 

8 मार्च। साहित्यकार, कवियित्री, गीतकार दिव्यांग काव्या वर्षा उम्र 30 वर्ष पुत्री सेवानिवृत्त कैप्टन बलदेव राज निवासी दरकाटी ज्वाली ने यह कविता की (भले ही पाप सौ हो जाएं, पर मैं वो खता करुँगी मैं बेटी हूं, पर कभी बेटी पैदा न करूंगी) आजकल बेटियों पर हो रहे अत्याचारों को देखकर लिखी है। काव्या वर्षा बचपन से दिव्यांग हैं। बचपन से ही चलने-फिरने में असमर्थ हैं। उसकी केवल बाएं हाथ की पहली अंगुली ही काम करती है जिससे वह मोबाइल को चलाती हैं।


उन्होंने कभी स्कूल का मुख भी नहीं देखा, पर मोबाइल पर पढ़ना लिखना सीखकर केवल एक अंगुली के सहारे कविता लिखने की उनकी कला को आज हर कोई सलाम करता है। बचपन से कविता में रुचि रखने वाली काव्या वर्षा का नाम वर्षा चौधरी है, लेकिन उनकी दिल्ली की एक दोस्त कवियित्री ने उन्हें काव्या वर्षा नाम देकर उनकी कला को सलाम किया है। काव्या वर्षा की कुछ कविताएं 2018 में दिल्ली की एक मैग्जीन में छपने के बाद फिर मुंबई की मैग्जीन साहित्यनामा में छप चुकी हैं।

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