सुल्याली आयुर्वेदिक चिकित्सालय में रात को ड्यूटी डाक्टर अस्पताल में ना होने पर जताया रोष

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: करोडो की लागत से बना दस बिस्तर का आयुर्वेदिक चिकित्सालय बना औचित्यहीन

: आपात स्थिति में रात को नहीं मिलती अस्पताल में सुविधा

: मजबूरीवश करना पड़ता है दूसरे अस्पतालों के रुख

 

आवाज ए हिमाचल 

स्वर्ण राणा, नूरपुर। नूरपूर के सुल्याली में दस बिस्तर का आयुर्वेदिक चिकत्सालय एमरजेंसी में सफेद हाथी साबित हो रहा है। करोड़ों रुपए की लागत से बना यह चिकत्सालय रात्रि आपात स्थिति सफेद हाथी बनकर रह जाता है। इस आयुर्वेदिक चिकित्सालय को लोगों की मांग पर पूर्व भाजपा सरकार व पूर्व मंत्री राकेश पठानिया के प्रयासों द्वारा लोगो क़ो चिकित्सा सुविधा देने के लिए दिन-रात शुरू करवाया गया। कुछ समय तक इस चिकित्सालय में दिन-रात सुविधा लोगों को मिलने लगी मगर कुछ विभागीय कमियों के चलते अब इस चिकित्सालय में शाम पांच बजे के बाद ओपीडी बन्द कर दी गई है। अब यहां सिर्फ आई.पी.डी. की सुविधा ही है। जिसको लेकर गांववासियों में भारी रोष है और इसको लेकर गांव वासी विभाग और सरकार के प्रति नाराजगी जाहिर कर रहे है।स्थानीय लोगों की माने तो सरकार व विभाग ने अगर यह सुविधा नहीं देनी थी तो इस चिकित्सालय में डाक्टर निवास क्यों बनवाया। जब कि रात्रि को जहां कोई डाक्टर नहीं ठहरता है। डाक्टर निवास में चिकित्सालय प्रभारी ने अपना सामान रखा हुआ है और विभाग को यही कहता है कि मैं जहां रुकता हूं। जब नियमानुसार जो भी डाक्टर यहां काम करते हैं उन्हें पांच से आठ किलोमीटर के पास ही रहना चाहिए, पर यहां सिर्फ एक डाक्टर ही गांव में रहता है। पंचायत उपप्रधान नरेश शर्मा ने कहा कि बीती रात मै चिकित्सालय में आया तो यहां जिस डाक्टर की ड्यूटी थी जिसे यहां ठहरने के लिए निवास मिला है वह डयूटी पर नहीं पाया गया। मैं यहां कुछ समय के लिए रुका तब तक कोई डाक्टर नहीं था। हालांकि वाकी स्टाफ नर्स व दूसरा कर्मचारी ड्यूटी पर था। जब हमने डाक्टर से सम्पर्क किया तो उन्होंने कहा कि मैं अपनी बहन के घर खाना खाने गया हूं। उन्होंने कहा कि मैं विभाग व सरकार से कहना चाहता हूं कि अगर डाक्टर आईपीडी के लिए डयूटी है तो क्या उसे यहां नहीं होना चाहिए । बीती रात एक अचानक एक बच्चे की तबीयत बिगड़ गई थी तो हम यहां उसे लेकर आए थे ।

पंचायत सदस्य सुनील भारद्वाज ने कहा कि गांव मे एक बच्चे की तबीयत एक दम बिगड़ गई तो हम चिकित्सालय में आपातकालीन इलाज सुविधा के लिए आए। यहां ड्यूटी पर जो डाक्टर था वह नहीं मिला। मैंने उन्हें फोन किया तो पहले उन्होंने फोन नहीं उठाया। मैंने किसी से फोन करवाया तो उन्होंने कहा मैं घर पर हू। फिर बाद में कहा कि मैं अपनी बहन के घर पर हूँ। इस चिकित्सालय को पूर्व मंत्री राकेश पठानिया ने कोशिश करके 80 लाख रुपया मंजूर करवाकर डाक्टर स्टाफ के लिए रहने के कमरे बनवाएं थे। मगर यहां कोई डाक्टर नहीं रुकता है। हम विभाग और सरकार से अपील करते हैं कि इसकी जांच की जाए ।क्योंकि गांव में अगर किसी की अचानक तबीयत बिगड़ जाए तो इस गांव में रात्रि के समय कोई डाक्टर नहीं होता।

 

चिकित्सालय प्रभारी डॉ .चन्द्र प्रकाश अरुण ने इस विषय में स्पष्टीकरण देते हुए कहा कि आज मेरी ड्यूटी 9.30 बजे से 4.30 बजे तक थी। जबकि मैं यहां से 5.30 बजे गया हूं।यहां से करीबन दो किलोमीटर दूर मेरी बहन का घर है,वहां खाने का प्रोग्राम था वहां मैं खाना खाने गया था। फिर मैं किसी ओर के पास चाय पीने रुक गया था। हम बताना चाहते हैं कि इस चिकित्सालय में ऑन कॉल नाइट सर्विस है। यहां इमरजेंसी कोई नहीं देखी जाती है।मैं अभी जो मरीज यहां दाखिल है उनकी जांच कर रहा हूं।

 

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