राजस्व रिकॉर्ड में मालिकाना नाम बदलने के लिए नहीं लगेगा किसी प्रकार का शुल्क

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आवाज़ ए हिमाचल 

शिमला। राजस्व अभिलेख में अगर कोई मालिक का नाम बदलना चाहता है तो इसके लिए कोई राजस्व शुल्क नहीं लगेगा। हिमाचल हाईकोर्ट के इस निर्णय पर सुप्रीम कोर्ट ने अपनी मुहर लगा दी है। सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार की उस अपील को खारिज कर दिया, जिसके तहत हाईकोर्ट के निर्णय को चुनौती दी गई थी। हिमाचल हाईकोर्ट ने 20 अप्रैल 2022 को निर्णय सुनाया था कि हिमाचल प्रदेश भू राजस्व अधिनियम के तहत मालिकाना नाम बदलने के लिए शुल्क लेना गैर कानूनी है।

हिमाचल सरकार ने बद्दी स्थित कंपनी को नाम बदलने पर राजस्व शुल्क जमा करवाने की शर्त लगाई थी। हाईकोर्ट ने जेएसटीआई टांसफार्मर की याचिका को स्वीकार कर इस शर्त को रद्द कर दिया था। राज्य सरकार ने इस निर्णय को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष चुनौती दी थी। अदालत ने सरकार की अपील को खारिज करते हुए हाईकोर्ट के निर्णय को निरस्त करने से इंकार कर दिया। 12 जून 2009 को राज्य सरकार ने कंपनी को नालागढ़ में जमीन खरीदने की स्वीकृति प्रदान की थी।

20 फरवरी 2010 को कंपनी ने जमीन की रजिस्ट्री करवा ली। उस समय कंपनी ने 20,27,800 रुपये की राजस्व राशि अदा की थी। बाद में अनुपूरक कंपनी ने अपने सारे शेयर जेएसटीटी कंपनी को बेच दिए। उसके बाद कंपनी का नाम बदलकर जेएसटीआई टांसफार्मर कर दिया गया। 22 मार्च 2018 को कंपनी के पंजीयक ने भी इस नाम को स्वीकृति प्रदान कर दी। उसके बाद कंपनी ने राजस्व अभिलेख में भी मालिकाना नाम बदलने के लिए सरकार को आवेदन किया।

राज्य सरकार ने इस आवेदन को इस शर्त के साथ स्वीकृत किया कि कंपनी को दोबारा से राजस्व शुल्क देना होगा। सरकार के इस निर्णय को हाईकोर्ट के समक्ष चुनौती दी गई थी। अदालत ने सरकार के इस निर्णय को खारिज करते हुए कहा था कि राजस्व अभिलेख में सिर्फ मालिक का नाम बदला जा रहा है। इसके लिए कोई दूसरी रजिस्ट्री पंजीकृत नहीं की जा रही है। अदालत ने इस तरह के कई निर्णयों का हवाला देते हुए सरकार के निर्णय को रद्द कर दिया था।

असफल उम्मीदवार नहीं दे सकता चयन प्रक्रिया को चुनौती

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने चयन प्रक्रिया से जुड़े मामले में अहम व्यवस्था दी है। अदालत ने निर्णय सुनाया है कि बिना किसी आपत्ति या विरोध के चयन प्रक्रिया में भाग लेने के बाद असफल उम्मीदवार इसे चुनौती देने का हक नहीं रखते हैं। न्यायाधीश ज्योत्सना रिवाल दुआ ने चयन प्रक्रिया को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज करते हुए यह निर्णय सुनाया। अदालत ने अपने निर्णय में स्पष्ट किया कि यदि किसी उम्मीदवार के लिए चयन प्रक्रिया का परिणाम सुखद नहीं है तो वह यह आरोप नहीं लगा सकता है कि साक्षात्कार की प्रक्रिया अनुचित थी।

अदालत ने अपने निर्णय में कहा कि याचिकाकर्ता ने न तो चयन कमेटी को प्रतिवादी बनाया था और न ही किसी के खिलाफ द्वेष भावना का आरोप लगाया था। याचिकाकर्ता संतोष रांटा ने याचिका में दलील दी थी कि उसने और अन्य ने वर्ष 2008 में कला अध्यापक के पद के लिए साक्षात्कार में भाग लिया था। यह पद सामान्य श्रेणी के विकलांग के लिए आरक्षित रखा गया था। आरोप लगाया गया था कि याचिकाकर्ता को 13.07 अंक दिए गए, जबकि चयनित उम्मीदवार को 13.57 अंक देकर सफल घोषित किया गया।

इस चयन प्रक्रिया के दो साल बाद याचिकाकर्ता ने चयनित उम्मीदवार की नियुक्ति को चुनौती दी। दलील दी गई थी कि जिस शैक्षणिक योग्यता के चयनित उम्मीदवार को अधिक अंक दिए गए है, उसका कला अध्यापक के पद के साथ कोई संबंध नहीं है। अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का हवाला देते हुए कहा कि याचिकाकर्ता चयन प्रक्रिया को चुनौती देने का हक नहीं रखता है।

 

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