दिल्ली के बड़े नेता का मेजर के घर डेरा, डिनर के टेबल पर पकी सियासी खिचड़ी

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 दिल्ली वेसड बताए जा रहे नेता, विधानसभा चुनाव को लेकर हुई चर्चा

 

आवाज ए हिमाचल

बबलू सूर्यवंशी, शाहपुर।

7 जून। प्रदेश में विधानसभा चुनाव नजदीक आते ही सरगर्मियां तेज़ हो गई हैं। इसी बीच बात अगर शाहपुर की करें और यहां मेजर विजय सिंह मानकोटिया का नाम न आए ऐसा हो ही नहीं सकता। मानकोटिया इन दिनों चुप्पी साधे हुए हैं तथा शाहपुर में ही नहीं बल्कि प्रदेश में भी मेजर की चुप्पी इन दिनों चर्चा का विषय बनी हुई है, लेकिन मेजर खामोश रहे ऐसा हो नहीं सकता।

भले ही कुछ समय से मेजर चुप्पी साधे हुए थे, लेकिन अपुष्ट सूत्रों से पता चला है कि उनके घर एक बड़े नेता डिनर पर पहुंचे थे। डिनर के बहाने सियासी खिचड़ी भी खूब पकी, क्योंकि विधानसभा के चुनाव नजदीक हैं और भाजपाई मिशन रिपीट तो कांग्रेसी सत्ता हथियाने के इरादे से राजनैतिक पासे फैंक रहे हैं। जीतना है, तो जिताने वालों का साथ भी चाहिए।

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मानकोटिया शाहपुर में ही नहीं बल्कि कांगड़ा संसदीय क्षेत्र के कई विधानसभाई हल्कों में भी इनका खासा रसूख है। प्रदेश के कई असन्तुष्ट नेता जो पूर्व में विधायक व मंत्री रहे हैं, इनके साथ बताए जा रहे हैं, इसका खुलासा खुद मेजर विजय सिंह मानकोटिया भी कर चुके हैं।
ऐसे में मेजर को चुनावी वेला में नजरअंदाज करना मुसीबत लेने समान है। शायद यही बजह एक बड़े नेता को ‘ओम महल’ तक ले आई। दिल्ली वेसड बताए जा रहे इन नेता के साथ क्या चर्चा व वार्तालाप हुआ, यह तो स्पष्ट नहीं हो पाया, लेकिन डिनर के बहाने प्रदेश की राजनीति में एक नया मोड़ लाने का प्रयास अवश्य हुआ है। एक समय क्यास लगाए जा रहे थे कि मेजर कांग्रेस का हाथ भी थाम सकते हैं, प्रदेश में झाड़ू भी पकड़ सकते हैं, परन्तु कांग्रेस, भाजपा को कोसने के बाद उन्होंने आम आदमी पार्टी और इसके संयोजक अरविंद केजरीवाल को जिस तरह खूब खरी-खोटी सुनाई जिसके मायने साफ थे कि मेजर ने अपने लिए सभी दरवाजे बन्द कर लिए हैं।

माना तो यह जा रहा था कि मानकोटिया अब “ओम महल” में आराम फरमा रहे हैं, परन्तु एसी रूम में बैठ कर वहां क्या पक रहा है, यह मालूम नहीं।

“आवाज ए हिमाचल” ने जब मेजर मानकोटिया से इस राजनैतिक डिनर को लेकर जानना चाहा तो उन्होंने इससे इंकार नहीं किया। उन्होंने कहा कि एक नहीं बहुत से नेता उनके घर आ रहे हैं। उन्होंने हंसते हुए कहा कि-“कि वह वक्त कुछ और था, यह वक्त कुछ और है। वह दौर कुछ और था, यह दौर कुछ और है”। देखना है कि यह डिनर प्रदेश की राजनीति में कोई नया मोड़ लाता है या फिर मेजर पहले की तरह इन्हें भी नकार देते हैं।

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