हाईकोर्ट ने रद्द की पावर कॉर्पोरेशन के 2 कर्मियों की नियुक्ति, बोर्ड पर लगाई 1 लाख की कॉस्ट

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आवाज़ ए हिमाचल 

शिमला, 9 मार्च। प्रदेश उच्च न्यायालय ने हिमाचल प्रदेश पावर कॉर्पोरेशन में नियमों के विरुद्ध की गई असिस्टैंट पर्सनल ऑफिसर व जूनियर ऑफिसर की नियुक्ति को रद्द कर दिया है। 12 वर्ष पूर्व की गईं इन नियुक्तियों को प्रार्थी रोशन लाल ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। कोर्ट ने प्रार्थी को बेवजह मामला दाखिल करने के लिए मजबूर करने पर हिमाचल प्रदेश पावर कॉर्पोरेशन व हिमाचल प्रदेश स्टेट इलैक्ट्रीसिटी बोर्ड पर 1 लाख की कॉस्ट भी लगाई है, साथ ही प्रार्थी को असिस्टैंट पर्सनल ऑफि सर के पद के लिए कंसीडर करने के आदेश भी दिए।

न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान ने रोशन लाल द्वारा दायर याचिका को मंजूर करते हुए अतिरिक्त मुख्य सचिव ऊर्जा को ये आदेश जारी किए कि वह व्यक्तिगत तौर पर इस मामले को लेकर विभागीय व आपराधिक जांच करें और जो भी अधिकारी इस प्रकरण के लिए जिम्मेदार हैं, उनके खिलाफ उपयुक्त कार्रवाई की जाए। चाहे वे नौकरी में हैं या नौकरी से सेवानिवृत्त हो चुके हैं। न्यायालय ने जांच 6 माह के भीतर पूरी करने के आदेश भी जारी किए हैं।

याचिका में दिए तथ्यों के अनुसार प्रतिवादी विनोद सिंघा जो नियमित तौर पर एग्रो इंडस्ट्रीयल पैकेजिंग लिमिटेड में कार्य कर रहा था, उसे प्रतिनियुक्ति के आधार पर हिमाचल प्रदेश पावर कॉर्पोरेशन में 6 अक्तूबर, 2007 को लाया गया, जबकि प्रतिवादी राजेश मामगेन को जूनियर असिस्टैंट के पद पर हिमाचल प्रदेश स्टेट को-ऑप्रेटिव मार्कीटिंग एंड कंज्यूमर फैडरेशन लिमिटेड से लाया गया।

14 मई, 2009 को पावर कॉर्पोरेशन ने एक आदेश जारी किया, जिसके तहत दोनों प्रतिवादियों को पावर कॉर्पोरेशन में समायोजित करने हेतु विकल्प देने को कहा लेकिन बाद में पावर कॉर्पोरेशन की 30 दिसम्बर, 2009 को एक मीटिंग हुई, जिसमें यह निर्णय लिया गया कि इन पदों को भरने के लिए आवेदन आमंत्रित किए जाएंगे।

इसमें राज्य सरकार और राज्य सरकार के उपक्रम व विद्युत बोर्ड में कार्य कर रहे कर्मियों को मौका देने का निर्णय लिया गया। 10 जनवरी, 2010 को विज्ञापन जारी किया गया, जिसमें विशेष तौर पर समायोजित करने बाबत आवेदन आमंत्रित किए गए। दोनों प्रतिवादी साक्षात्कार में पेश नहीं हुए फिर भी इन्हें निगम में 4 मार्च, 2010 को नियुक्ति दे दी। दूसरा प्रतिवादी अयोग्य होते हुए भी नियुक्त कर लिया गया, जिसे हाईकोर्ट ने कानून के विपरीत पाया और उपरोक्त निर्णय सुनाया।

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