पशुपालन विभाग ने  लंपी चर्म रोग से पशुओं को बचाने के लिए जारी की एडवाइजरी 

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आवाज़ ए हिमाचल 

धर्मशाला। लंपी चर्म रोग कांगड़ा में पैर पसारने लगा है। ऐसे में पशुपालन विभाग ने पशुपालकों के लिए एडवाइजरी जारी की है।

पशुपालन विभाग के उपनिदेशक डा. संजीव धीमान ने बताया कि लंपी चर्म रोग एक विषाणु जनित संक्रामक रोग है। यह मुख्यत गाय व भैंषों में पाया जाता है। इसके लक्षणों यह है कि पशु को तेज बुखार होता है। और यह 104 से 106 डिग्री होता है। स्किन रोग एक विषाणु जनित संक्रामक रोग है। जो मुख्यतः गाय व भैंसों में होता है।

लंबी रोग के यह हैं लक्षण

पशु को तेज बुखार 104-106 डिग्री तक हो जाता है। त्वचा की मोटी मोटी गांठे बन जाती है। पशु आहार नहीं ले पाता और कमजोर होने के कारण दुधारू पशुओं का दूध सूख जाता है या इसमें कमी हो जाती है।

 संक्रमण के कारण

लंपी चर्म रोग बहुत तेजी से फैलने वाला रोग है। इस रोग का विषाणु मच्छरों, मक्खियों चिचड़ आदी कीटों से आसानी से फैलता है। इसके साथ ही यह दूषित पानी, लार, एवं चारे के माध्यम से भी पशुओं को संक्रमित करता है। यह रोग गर्म एवं नमी वाले मौसम में ज्यादा तेज गति से फैलता है।

ऐसे करें बचाव

पशुओं को कीटनाशक दवाई साइपरमैथ्रिन, फ्लूमेथ्रिन या एमिट्राज, या आइब्रोमैक्टिन के टीके पशु चिकित्सक के परामर्श के बाद लगाएं ताकि बाहरी परिजीवियों पर नियंत्रण पाया जा सके। पशुओं को बहुत थोड़ा विलंब से पशुशाला से बाहर लाएं और सांय काल से थोड़ा पहले ही पशुओं को पशुशाला के भीतर बांध दें ताकि मच्छर के प्रकोप से बचा जा सके। पशुओं को 24 घंटे खुले में न बांधे, पशुशाला के आस पास उगे खरपतवार को काट दें ताकि उसमें मच्छर न पनपपाएं, पशुशाला में सफाई रखें और नियमित तौर पर गोबर को बाहर निकाल दें। आम तौर पर मक्खियां गोबर पर ही पनपती हैं, इस लिए यह जरूरी है कि खाद के लिए बनाए जाने वाले गोबर के ढेर को पशुशाला से दूर बनाएं और केवल उसके चारों तरफ ब्लीचिंग पाउडर का छिड़काव करें।

पशुशाला की नालियों को साफ रखें और सप्ताह में दो बार ब्लीचिंग पाउंडर का छिड़काव करें, सायं काल में पशुओं के बाहर पतों या गत्ते को जलाकर धुआं करें, जिससे कि मच्छर व मक्खी भाग जाए। पशुशाला को खाली करके कीटनाशक दवाई जैसे साइपरमैथीन, तीन मिलीलीटर प्रति एक लीटर पानी के घोल का छिड़काव करें ताकि बाहरी परिजीवियों पर नियंत्रण पाया जा सके। पशुशाला की दीवारों पर चूने की पौताई करें। पशुशाला की खिड़कियों पर जाली लगवाएं। पशुशाला का फर्श अगर कच्चा हो तो उस पर चूने का छिड़काव करें। और पक्का फर्श हो तो पोटाशियम प्रेमेगानेट के घोल से सफाई करें।

 

रोग के प्रारंभिक लक्षण 

बीमार पशु को अन्य स्वस्थ पशुओं से अलग कर दें और उसे खुले में चरने के लिए न छोड़ें। बीमार पशु की सूचना नजदीकी पशु चिकित्सालय को दें। ताकि उपचार शुरू किया जा सके। स्वस्थ पशुओं को चारा और पानी देने के बाद ही बीमार पशु को खाने के लिए चारा दें। बीमार पशु के बजे हुए चारे को जला दें। स्वस्थ पशुओं का दैनिक कार्य पहले करें। संक्रमित पशुशाला में अन्य लोगों को जाने से मना करें। संक्रमित पशुशाला को कीटाणुरहित करने के लिए सोडियम हाइपोक्लोराइड के दो से तीन प्रतिशत घोल का छिड़काव करें। मृत पशु के संपर्क में रही वस्तुओं व स्थान को फिनाइल, लाल दवाई आदि से कीटाणु रहित करें। चर्म रोग से मृत पशु को लगभग 1.5 मीटर गहरे गड्डे में चूने या नमक के साथ दवाएं। रोग ग्रसत क्षेत्र में पशुओं की आवाजाही रोके।

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