…आखिर इन दिनों क्या पक रहा है ओम महल तियारा में

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घुमंतू की कलम से…


कोई नहीं जानता कि आखिर इन दिनों ओम महल तियारा में क्या पक रहा है..? एक लंबे अंतराल के बाद वहां लोगों की भीड़ जुटना क्यों शुरू हुई है..? ओम महल से निकल कर पूर्व मंत्री मेजर विजय सिंह मानकोटिया क्यों लोगों से मिलने लगे हैं..?
कोई तो वजह है अन्यथा उम्र के इस पड़ाव में मानकोटिया लोगों के बीच नहीं पहुंचते। क्या कोई पुरानी सियासी दुश्मनी निभाने मेजर अपनी बन्दूक से गोली चलाने निकले हैं…या सिर्फ फोके फ़ायरों से डराने के प्रयास हैं…? स्प्ष्ट कुछ भी नहीं परन्तु मानकोटिया के बोल कुछ नया होने का ईशारा अवश्य करने लगे हैं। शाहपुर विधानसभा क्षेत्र से कुल पांच बार चुनाव जीत कर विधानसभा में अपना दमखम दिखा चुके मानकोटिया क्या फिर से विधानसभा पहुंचने की राह तलाश रहे हैं या फिर इस सक्रियता के पीछे कोई राज छुपाए हुए हैं, इसका राजनैतिक माहिर भी सही आकलन नहीं कर पा रहे हैं।
एक जमाने में मेजर की यहां तूती बोला करती थी परन्तु अब हालात बदल गए हैं। उनके रणनीतिकार माने जाने वाले अनेकों करीबी उनसे इतनी दूर चले गए हैं जिन्हें शायद चाह कर भी मेजर वापिस नहीं ला पाएंगे। ऐसे में यदि मेजर अपनी बगिया में फूल खिलने की उम्मीद लगाए बैठे हैं तो अभी लगता नहीं कि बेहतरीन माली उनकी बगिया को सींचने में आगे आएं । भाजपा, कांग्रेस व आप पर अखबारी हमले करने के बाद मानकोटिया ने शाहपुर के धारकंडी में जिस तरह चुनावी दंगल में उतरने की अपनी बात दोहराकर समर्थकों से एक्टिव होने को कहा है उससे जाहिर है कि नतीजा चाहे कुछ भी हो पर वह चुनावी मैदान छोड़ेंगे नहीं। दावा तो यह भी किया जा रहा है कि वह पार्टी टिकट पर ही चुनाव लड़ेंगे। ऐसे में कौन सी पार्टी उन्हें अपना प्रत्याशी बनाने में दिलचस्पी दिखा रही है, यह कंही दिख तो नहीं रहा है परन्तु मानकोटिया के दावे को नकारा भी नहीं जा सकता क्योंकि राजनीति में कुछ भी सम्भव है। वैसे भी निर्दलीय, जनता दल व कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़ मानकोटिया अपना आधार पांच बार दिखा चुके हैं। पिछले चुनाव में भी त्रिकोणीय मुकाबले में निर्दलीय चुनाव लड़ वह दूसरे स्थान पर रहे थे। मेजर की बढ़ती सक्रियता से भाजपा इसलिए
स्वयं को सुरक्षित मान रही है क्योंकि त्रिकोणीय मुकाबले में भाजपा यहां हमेशा जीतती रही है परन्तु अब हालात वैसे नहीं हैं। शाहपुर कांग्रेस को भी मानकोटिया के बोल चुभने लगे हैं। आखिर चुभे भी क्यों न, यदि पांच वर्ष फसल कोई बीजता रहे और कटाई के वक्त कोई और आ जाए तो दर्द तो होगा ही।

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