आवाज़ ए हिमाचल
अभिषेक मिश्रा बिलासपुर
08 मई। कलाकारों की धरती बिलासपुर में शास्त्रीय संगीत का नया सुर्योदय कुमार संभव के नाम से हो रहा है। संगीत को अपना सब कुछ मानने वाले कुमार संभव ने इसी कला पर अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया है, संगीत जैसी महान विद्या को संभव अपने जीने का मकसद मानते हैं। महज 15 साल की उम्र में चंडीगढ़ में स्टार कलाकारों के साथ लाइव कंसर्ट में वोकल के साथ बजाना, प्रसिद्ध माॅडल और सिंगर सारा गुरपाल के साथ काम करना संभव के संघर्श की शुरूआत है। बिलासपुर नगर के रौड़ा सेक्टर में ज्वॅलर्स चंद्रशेखर और मां सेवानिवृत ईटीओ एक्साइज विभाग प्रेम लता ठाकुर के एकलौते पुत्र कुमार संभव की प्रारंभिक शिक्षा स्थानीय डीएवी स्कूल के अलावा जहां भी माता का स्थानांतरण हुआ वहीं हुई ।
दसवीं करने बाद आगे की शिक्षा चंडीगढ़ में की। इसी दौरान कुमार संभव ने अपने संगीतमयी सपनों को उड़ान देने के लिए दिन रात एक करना शुरू किया। देखते ही देखते इन्होने 27-डी सेक्टर में अपना शिवोहम नाम से स्टूडियो भी खोल दिया। इस दौरान उनके संपर्क में काफी बढ़ोतरी होने के बाद बिलासपुर के डियारा सेक्टर में स्टूडियो की स्थापना की तथा शास्त्रीय संगीत की खोज में बनारस चले गए। भारतीय मूल के संगीत को खोजन की चाह में कुमार संभव को यहां बनारस घराने की 13वीं पीढ़ी के गुरू पंडित देवव्रत मिश्रा के यहां भारतीय शास्त्रीय संगीत सीखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। यहीं नहीं चंद महीनों की कड़ी मेहनत के बाद पंडित देवव्रत मिश्रा के साथ उनका राग मेघ बेस्ट प्रोजैक्ट भी लांच हुआ। जिसमें कुमार संभव की मेहनत स्वत ही दिखती है।
इसके अलावा उनकी एलबम तांडव महाशिवरात्री के उपलक्ष्य पर वाराणसी में 11 मार्च को लांच हुई। तांडव एलबम का टूअर पूरा एक महीना चला जिसमें जम्मू कश्मीर , चंडीगढ़, वाराणसी, दिल्ली और मनाली में लाईव शो हुए तथा अलग पहचान बनी। कुमार संभव ने बताया कि पंजाबी इंडस्ट्री में सभी कलाकार और साजिंदे एक दूसरे को प्रोमोट करते हैं। जबकि हिमाचल में इसकी कमी है। लेकिन उनका सपना है कि वे हिमाचल में ही मुंबई की स्थापना करेंगे। इसके लिए उनके प्रयास निरंतर जारी हैं। शिवोहम बैनर तले म्यूजिक, पब्लिकेशन, ज्वैलरी ब्रांड फोल्क जवैल्स तथा मनाली में सरस्वती पैलेस नाम से होटल संचालित कर रहे हैं। कुमार संभव का मानना है कि जो संगीत को जानते हैं या जानने की कोशिश करते हैं वह निरंतर रियाज में लीन रहकर अपनी कमियों में सुधार लाते हैं जबकि जिन्हें संगीत की जानकारी नहीं होती वे दिखावे को महत्व देते हुए समय बर्बाद करते हैं। लोगों के मन में जगह बनाने के लिए प्रस्तुति परिपक्व होगी तो क्षणिक नहीं लंबे समय तक याद रहेगी।