राजगढ के देवठी मंझगाव के विद्या नंद सरैक को पदम श्री मिलने से क्षेत्र में खुशी का माहौल

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आवाज़ ए हिमाचल

गोपाल दत्त शर्मा,राजगढ़

26 जनवरी ।सिरमौर जिला के राजगढ़ उपमंडल की उप तहसील पझौता के देवठी मझगांव निवासी विद्यानंद सरैक को पद्मश्री से अलंकृत किया जाएगा। उन्हें साहित्य व शिक्षा एवं शौध के क्षेत्र में योगदान के लिए पुरस्कृत किया जाएगा। विद्यानंद सरैक को वर्ष 2016 में लोक संस्कृति के संरक्षण के लिए राष्ट्रपति पुरस्कार भी मिल चुका है।

 


प्रसिद्ध शौध कर्ता साहित्यकार, कलाकार और लोकगायक विद्यानंद सरैक को साहित्य व शिक्षा के क्षेत्र में पद्मश्री मिलने से समूचे क्षेत्र में खुशी की लहर दौड़ गई है।उनके गांव सहित पूरे रासू मांदर क्षेत्र मे खुशी का माहौल है। देवठी मझगांव निवासी विद्यानंद सरैक का जन्म 26 जून 1941 को पिता गणेशा राम सरैक और माता मुन्नी देवी के घर हुआ।

निर्धन परिवार में जन्में विद्यानंद सरैक के पिता की मृत्यु उनके बचपन में ही हो गई थी। उन्होंने विपरीत परिस्थितियों के बावजूद स्नातक तक शिक्षा हासिल की। 1959 से 1976 तक शिक्षा विभाग में अध्यापक के रूप में सेवाएं दीं। पारिवारिक पृष्ठभूमि के चलते चार वर्ष की आयु से ही वह करियाला (नाटक) मंच से जुड़ गए और लोक संस्कृति के प्रति उनका लगाव बढ़ता गया।


82 वर्षीय विद्यानंद सरैक आज भी हिमाचली लोक गायन, उपन्यास और हिमाचली लोक संगीत सहित पारंपरिक सीटू नृत्य की खौज के लिए अपनी विशेष पहचान रखते हैं। आठ वर्ष की आयु में विद्यानंद सरैक ने दिल्ली में आल इंडिया रेडियो पर पहला प्रोग्राम दिया था। उसके बाद देशभर में कार्यक्रम किए और सिरमौर सहित प्रदेश की संस्कृति को संरक्षण के लिए प्रयासरत रहे। कुछ वर्षों से वह सिरमौर के आसरा व चूड़ेश्वर कला मंच के संरक्षक हैं। विद्यानंद सरैक ने हिमाचली और सिरमौर की पारंपरिक सांस्कृतिक विरासत को उपन्यासों में भी उतारा है।


उन्होंने हिमाचली संस्कृति तथा लोक विद्याओं पर कई किताबें लिखी हैं। पारंपरिक लोक नृत्य जैसे ठोडा सिंटू, बड़ाहलटू, हिमाचल की देव पूजा पद्धति और पांजडे के साथ नोबेल पुरस्कार विजेता रविंद्रनाथ टैगोर के गीतांजलि संस्करण से 51 कविताओं का सिरमौरी भाषा में अनुवाद किया है। विद्यानंद सांस्कृतिक मंडली स्वर्ग लोक नृत्य मंडल के साथ मिलकर व देश-विदेश में कई मंचों पर हिमाचली संस्कृति की छाप छोड़ चुके हैं
81 वर्ष की आयु में भी वह लोक साहित्य, लोक संस्कृति के संरक्षण में जुड़े हैं। वर्ष 1972 में उन्होंने पहाड़ी कविताओं की पुस्तकों का संग्रह चिट्टी चादर, होरी जुबड़ी, नालो झालो रे सुर भाषा एवं संस्कृति विभाग के साथ मिल कर किया। सैकडो की संख्या मे सम्मान प्राप्त करने वाले विद्यानंद सरैक को 2018 में राष्ट्रपति अवार्ड से भी नवाजा गया। उन्होंने 2003 में चूड़ेश्वर लोक नृत्य सांस्कृतिक मंडल के साथ मिलकर लोक संस्कृति और पहाड़ी भाषा के संरक्षण का कार्य आरंभ किया। कुछ समय पहले खंड विकास अधिकारी कार्यालय राजगढ़ से उनकी उपलब्धियों का रिकॉर्ड मांगा गया था। अब केंद्रीय गृह मंत्रालय ने विद्यानंद सरैक को साहित्य के क्षेत्र में उन्हें पद्मश्री पुरस्कार देने की घोषणा की है, जिसे राष्ट्रपति मार्च अप्रैल माह में औपचारिक समारोह में प्रदान करेंगे। विद्यानंद सरैक ने इसके लिए प्रदेश और केंद्र सरकार का आभार जताया है।

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