आवाज ए हिमाचल
शिमला। हिमाचल सरकार वाटर सेस के मामले में भारत सरकार के कड़े रुख के बावजूद लीगल लड़ाई ही लड़ेगी। केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय को वहां से जारी पत्र का जवाब देने के बजाय कानूनी विकल्प को ही राज्य सरकार फिलहाल चुन रही है। केंद्र सरकार की तरफ से जारी पत्र पर बुधवार को राज्य सरकार में कई स्तरों पर चर्चा हुई। मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने भी जल शक्ति और ऊर्जा विभाग से फीडबैक मांगा है। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि हिमाचल विधानसभा से विधेयक पारित होने के बाद वाटर सेस को लागू करना एक कानून बन चुका है। अब इस बारे में आगामी फैसला भी विधानसभा में ही लिया जा सकता है। तब तक राज्य सरकार को अपने और केंद्र सरकार के स्टैंड के बीच अपना फैसला सही साबित करना है और यह लीगल लड़ाई अब हाई कोर्ट में ही होगी। इसकी वजह यह है कि हिमाचल हाई कोर्ट में वाटर सेस को चुनौती देने के लिए याचिकाएं दायर हो रही हैं। बुधवार को भी एडी हाइड्रो पावर लिमिटेड के केस में हाई कोर्ट ने राज्य और केंद्र सरकार को इस मामले में जवाब दायर करने के लिए चार हफ्ते का समय दिया।
मामले की सुनवाई अब 30 मई, 2023 को होगी। इसी केस में केंद्र सरकार ने भी नोटिस का जवाब देना है। हालांकि मंगलवार को केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय ने वाटर सेस या वाटर टैक्स लगाने के खिलाफ दो पत्र जारी किए थे। एक पत्र में सभी राज्यों के मुख्य सचिवों को इस तरह के वाटर सेस को असंवैधानिक बताया गया है और ऐसे फैसले को वापस लेने के लिए कहा गया है। दूसरी तरफ विद्युत उत्पादक पब्लिक सेक्टर अंडरटेकिंग कंपनियों को ही सीधा पत्र लिखकर भी वाटर सेस को अवैध और असंवैधानिक बताया गया है।
हिमाचल सरकार का तर्क था कि राज्य में टैक्स बिजली पर नहीं, बल्कि राज्य की नदियों के पानी पर लगाया है। यह राज्यों के संवैधानिक अधिकारों के तहत ही है। जबकि केंद्र सरकार ने दूसरा तर्क दिया है। केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय ने कहा है कि टैक्स या सेस चाहे सिर्फ पानी पर लगाया गया हो, लेकिन इसका असर पावर टेरिफ पर हुआ है। कोई भी राज्य ऐसा फैसला नहीं ले सकता, जिसका असर दूसरे राज्य के बिजली उपभोक्ताओं पर हो। यही वजह है कि अब सारी लड़ाई लीगल है और हिमाचल सरकार भी केंद्र सरकार से इस मसले पर सीधे टकराव के मूड में नहीं है।