आवाज़ ए हिमाचल
मकलोडगंज। पर्यटन नगरी धर्मशाला- मकलोडगंज के भागसूनाग में अढ़ाई सौ से 300 मिलियन (30 करोड़) वर्ष पुरानी चट्टानें पाई गई। इन चट्टानों की पहचान जियोलाजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के पूर्व निदेशक एलएन अग्रवाल ने की। उन्होंने कहा कि इन चट्टानों की उत्पति हिमालय के साथ हुई है और यहां भागसूनाग में भारत का पहला जियो डायवर्सिटी पार्क बनने की संभावनाएं दिख रही हैं। हिमालयन पर्वतों के बनने के समय की इन चट्टानों को हिमालयन रीजन के जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश व उत्तराखंड की दो हजार किलोमीटर की रेंज में विशेष स्थानों पर पाए जाती हैं। वैज्ञानिकों ने ऐसा भी पाया है कि धौलाधार की पहाडिय़ां भी इसी तर्ज की चट्टानों से उतने ही वर्ष पूर्व बनी हैं। भागसूनाग में पाई जाने वाली इन चट्टानों की आकृति फोल्ड या यूं कहें कि पत्थरों को एक-दूसरे से जोड़े जाने की प्रवृति दिखती है। साथ ही इन चट्टानों में सीमेंट तैयार किए जाने के वेे कण भी पाए गए हैं, जो कि हजारों वर्ष पूर्व की इन चट्टानों का जियोलॉजी के तहत भी अपना विशेष महत्त्व रखती है।
इतना ही नहीं इस विषय में अध्ययन करने व रिसर्च करने वालों के लिए यह एक बड़ा प्राकृतिक खजाना है, जिससे कई अहम विषयों के रिसर्च सामने आ सकेंगे। इसके चलते ही यहां अब जियो-डायवर्सिटी पार्क बनाने की संभावनाएं तलाशी गई हैं। इस पर सरकार व पर्यटन विभाग गंभीरता से काम करें, तो कांगड़ा घाटी के पर्यटन व्यवसाय को और अधिक गति मिलेगी। इंडिया के पूर्व निदेशक एलएन अग्रवाल ने बताया कि इन फोल्ड होने वाली चट्टानों की तलाश कर इस क्षेत्र के विकास के लिए पर्यटन विभाग को प्रस्ताव दिया है। उन्होंने बताया कि यह रॉक करीब अढ़ाई सौ से 300 मिलियन(30 करोड़) साल पुरानी है।
वैज्ञानिक महत्त्व की इन मनाया जाता है। विभाग की ओर से पार्क विकसित कर संबंधित करवाई जाए, तो पर्यटन क्षेत्र में एक नया अध्याय जुड़ जाएगा। उन्होंने बताया कि इंटरनेशनल जियो डायवर्सिटी डे छह अक्तूबर को विश्वभर में मनाया जाता है। उन्होंने बताया कि यह भारत का पहला जियो डायवर्सिटी पार्क होगा। आज दुनिया के कई देशों में जियो डायवर्सिटी पार्क लोगों के आकर्षण के केंद्र बन रहे हैं। हिमाचल में पहली बार ऐसे स्थल की पहचान कर प्रस्ताव तैयार किया गया है। उन्होंने बताया कि इसके लिए पर्यटन विभाग को प्रस्ताव भी दिया गया है। ऐसे स्ट्रक्कर को प्रजर्व करने व जियो हैरीटेज स्ट्रक्चर बनाने पर काम किया जाए, तो पर्यटकों के लिए भारत में भी इस पर काम शुरू हो यह अलग से नई चीज दिखाई दिया जाएगा। जियोलाजिकल सर्वे ऑफ विषय की जानकारी उपलब्ध करवा सकती है।
श्री अग्रवाल ने बताया कि जियो डायवर्सिटी पार्क में इन बैंड होने वाली चट्टानों के महत्त्व और स्लेटों के महत्त्व से लेकर तमाम सारी जानकारी बोर्ड लगाकर यहां आने वाले सैलानियों तक पहुंचाई जा सकती है। उन्होंने बताया कि हालांकि यह अभी अपनी तरह का नया विषय है, लेकिन दुनिया भर के कई देशों में इस पर शोध हो चुका है। उधर, पर्यटन विभाग के उपनिदेशक विनय धीमान का कहना है कि प्रस्ताव को निदेशालय को भेज दिया गया है। विभाग भागसूनाग के प्रस्ताव पर काम कर रहा है। संभावनाएं बहुत हैं, उन्हें तलाशकर पर्यटन में नए आयाम स्थापित करने पर जोर दे रहा है।
रिसर्च स्कालर-छात्र कर सकते हैं अध्ययन
जियोलोजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के पूर्व निदेशक एलएन अग्रवाल ने बताया कि इन फोल्ड होने वाली चट्टानों का रिसर्च स्कॉलर व छात्र के साथ-साथ अन्य लोग भी अध्ययन कर सकते हैं। भागसूनाग मंदिर से भागसू वाटरफाल को जाते समय रास्ते में बैंड होने वाले चट्टानें हैं। ऐसी चट्टानें मिलियन वर्ष पुरानी हैं। इनके महत्त्व व इनके बारे में जानकारी नई पीढ़ी तक पहुंचाने के लिए जियो डायवर्सिटी पार्क बनाना आवश्यक है।