ट्राइबल एरिया में कोई भी कर सकता है नौकरी, स्थानीय लोगों को प्रमुखता देने की अधिसूचना हाई कोर्ट ने की रद्द

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आवाज़ ए हिमाचल  

शिमला। प्रदेश हाई कोर्ट ने सरकार द्वारा जारी उस अधिसूचना को रद्द कर दिया है, जिसके तहत ट्राइबल एरिया में सरकारी क्षेत्र में रोजगार की पेशकश करते समय तृतीय और चतुर्थ श्रेणी के पदों के लिए ट्राइबल एरिया का निवासी होने की शर्त निर्धारित की थी। न्यायालय ने अधिसूचना को भारत के संविधान के प्रावधानों के विपरीत पाया। न्यायाधीश संदीप शर्मा ने याचिकाकर्ताओं सुरेंद्र सिंह, रमेश कुमार और दलीप कुमार द्वारा दायर याचिकाओं का निपटारा करते हुए यह निर्णय सुनाया। याचिका में दिए तथ्यों के अनुसार उप-निदेशक, प्रारंभिक शिक्षा, रिकांगपिओ, जिला किन्नौर ने ड्राइंग मास्टर, पीईटी एवं शास्त्री के पदों को बैचवाइज भरने के उद्देश्य से याचिकाकर्ताओं को दिनांक 14.10.2016 को कॉल लैटर भेजा। उन्हें किन्नौर जिला में अनुसूचित जाति (अनारक्षित) के लिए आरक्षित पद (पदों) के खिलाफ साक्षात्कार के लिए आने के लिए कहा गया।

हालांकि उपरोक्त साक्षात्कार पत्रों के अनुसार, याचिकाकर्ता साक्षात्कार में उपस्थित हुए, लेकिन जनजाति विकास विभाग द्वारा दिनांक 16.8.2004 को जारी अधिसूचना में तहत निर्देशों को देखते हुए नियुक्ति के लिए उनकी उम्मीदवारी पर विचार नहीं किया गया। याचिकाओं में दलील दी गई थी कि 16.8.2004 के निर्देश कानूनी रूप से टिकाऊ नहीं हैं। यदि उपरोक्त निर्देशों को जारी रखने की अनुमति दी जाती है, तो यह जिला किन्नौर की स्थानीय आबादी के लिए 100 फीसदी आरक्षण होगा, जो कि कानून के तहत स्वीकार्य नहीं है। यह भी दलील थी कि सार्वजनिक रोजगार के लिए राज्य या केंद्र शासित प्रदेश के भीतर निवास की आवश्यकता के संबंध में संसद केवल कानून बनाने के लिए सक्षम है। दूसरी ओर, सरकार की ओर से उपस्थित अतिरिक्त महाधिवक्ता ने कहा कि चूंकि याचिकाकर्ता किन्नौर के आदिवासी जिला के स्थानीय निवासी नहीं हैं, इसलिए दिनांक 16.8.2004 की अधिसूचना के मद्देनजर उनकी उम्मीदवारी पर विचार नहीं किया जा सकता है।

न्यायालय ने पाया कि कानून के प्रावधानों में यह स्पष्ट रूप से निर्धारित किया गया है कि राज्य के तहत किसी भी कार्यालय में रोजगार या नियुक्ति से संबंधित मामलों में सभी नागरिकों के लिए अवसर की समानता होगी। न्यायालय ने पाया कि अधिसूचना दिनांक 16-8-2004 में प्रशासनिक निर्देश शामिल हैं, जो संवैधानिक प्रावधानों को नजरअंदाज नहीं कर सकते हैं। न्यायालय ने याचिकाओं को मंजूर करते हुए 16-8-2004 की अधिसूचना रद्द कर दी है।

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