आवाज़ ए हिमाचल
अभिषेक मिश्रा, बिलासपुर। भाषा एवं संस्कृति विभाग द्वारा संस्कृति भवन बिलासपुर में मासिक गोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता साहित्यकार रामपाल डोगरा ने की। इस अवसर पर बतौर विशेष अतिथि बुद्धि सिंह चन्देल तथा मंच का संचालन साहित्यकार व पत्रकार अरुण डोगरा ने किया। कार्यक्रम का शुभारम्भ साहित्यकारों द्वारा मां सरस्वती का दीप प्रज्वलित कर किया गया।
जिला भाषा अधिकारी रेवती सैनी ने हे शारदे मां, हे शारदे मां सरस्वती मां की वन्दना की। इसके उपरांत एस. आर. आजाद ने घर से बेघर उसने कर दिया। डॉ. अनीता शर्मा ने -झाडू और बच्चियां शीर्षक से रचना प्रस्तुत की- पंक्तियां थी- बड़े-बड़े आदर्शों के झाडू की तीलियां बिखर जाती हैं। रविन्द्र कुमार शर्मा ने दूजे रिया चुकणी से जे चलदा से अपणेयां जो गवान्दा, बुद्धि सिंह चन्देल ने बच्छरेटू शिवालय की अमर कहानी, कहती तुमसे सुनो जबानी”। रविन्द्र भटटा ने “फिर सोचता हूं कि कैसे सम्भाल कर रखूंगा अपना अतीत”। हुसैन अली ने मेरा वजूद मेरी हरारत से घबरा बैठा है, मेरी हकायत को वो अपना रकीब बना बैठा है। शिवपाल गर्ग ने ” नींद बेची तो सपने खरीदे है कुछ “। सुरेन्द्र मिन्हास ने चिढ़ी ग्लावे कावा जो तू पिटया अपनी मावा जो. चार दिनां री टिन्टई तेरी, कजो खाया करदा ऐडड भावा जो ” पूनम शर्मा ने बड़ी अच्छी लगती है सुनने में सुनाने में, ‘बातें’ मोहमाया के त्याग की ” इन्द्र सिंह चन्देल ने पहाड़ी गीत ऊची ऊची रिडिया पत्थरु जे चमके, खडडा चिमकेया पानी, प्रस्तुत किया।
इसके अतिरिक्त अरुण डोगरा की पंक्तियां थीं- “सहारों का उजाला हो कितना, खुशियों तक ही वो टिकता है, मजबूरियों के फिर अन्धेरे में हिम्मत का शोला दहकता है”। परविन्द्र शर्मा बिलासपुर की राजनीति पर अपनी रचना प्रस्तुत की।