अभिषेक मिश्रा बिलासपुर
02 दिसंबर। जिला कांग्रेस के पूर्व प्रवक्ता संदीप सांख्यान ने कहा कि बिलासपुर जिला में विस्थापन का दर्द प्रतिदिन गहराता ही जा रहा है , विस्थापितों की समस्याओं का निपटारा जितना नहीं हो पाया जितनी और विकट समस्याएं खड़ी होती जा रही हैं। ताजा व्यवस्था के अनुसार जिन भाखड़ा विस्थापित परिवारों को जलमग्न बिलासपुर की एवज में प्लाट मिले थे वह हाउस कम शॉप में नाम से जाने जाते हैं, कुछ जगहों पर 3 बिस्वा के प्लॉट भी आबंटित किए गए थे, जैसे जैसे समय बीतता गया परिवार बड़े होते गए लेकिन विस्थापितों को मिले प्लाटों की भूमि तो वही रही। अब कानून और परम्परा के अनुसार उन प्लाटों का विभाजन बढे हुए परिवार के अन्य सदस्यों के नाम पर हुआ या उनका वरास्त (विरासत) इंतकाल हुआ तो अब
विस्थापित परिवार के सदस्यों के हिस्सों में एक बिस्वा भूमि से भी कम मालिकाना भूमि आने लगी है कहीं पर तो अब भूमि मात्र फुटों तक ही रह गई है। इससे परिवारों में आपसी खिंचाव तो आया ही है लेकिन भूमि भी निमित मात्र ही रह गई। कुछ परिवार तो ऐसे है जिनके एक तीन बिस्वा के 75 से 80 हिस्से दार हो चुके हैं इस बात से आप खुद ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस तरह के परिवार के सदस्यों को भूमिहीन परिवारों की श्रेणी में रखा जाए या नहीं! यह समस्या ज्यादातर डियारा सेक्टर, मेन मार्किट, रौडा सेक्टर और ग्राम पंचायत नौंणी के मानवां और गोविंद सागर के छोर पर बसे अधिकतम परिवारों के साथ है। और कुछ भाखड़ा विस्थापित परिवारों का कोई भी सदस्य न तो किसी सरकारी नौकरी या गैर सरकारी नौकरी में न होने के कारण भी साधन संम्पन्न नहीं हो पाया,
तो ऐसे परिवार के सदस्यों को भूमिहीन परिवार की श्रेणी में रखा जाना चाहिए और इनको कम से चार से पांच बिस्वा भूमि उपलब्ध करवाई जाए। तत्कालीन कांग्रेस की सरकारों ने प्रदेश में रह रहे भूमिहीन परिवारों के लिए जो निति बनाई है उसके अनुसार 2 बिस्वा जमीन भूमिहीन परिवार को मिलनी चाहिए लेकिन जहां तक बिलासपुर के भाखड़ा विस्थापितों का प्रश्न है उनको 4 से 5 बिस्वा के प्लाट और ग्रामीण क्षेत्रों में कम से कम 3 बीघा जमीन उपलब्ध करवाई जानी चाहिए। उक्त जनसमस्या से साफ लगता है कि बिलासपुर के भाखड़ा-विस्थापितों का दर्द उतना ठीक नहीं हो पाया जितना दिन-प्रतिदिन आने वाली समस्याओं से बढ़ता ही गया और वह अब भी बरकरार है।