आवाज़ ए हिमाचल
जतिन लटावा,जोगिन्द्र नगर
05 सितंबर।घराट जिसे पनचक्की के नाम से भी जाना जाता है। सदियों से पहाड़ी इलाकों में पनचक्की से चलने वाले घराट लोगों को पौष्टिक आटा देकर जीवन प्रदान करते थे,लेकिन अब बहुत ही कम घराट देखने को मिलते हैं। अधिकतर घराट अब विलुप्त हो चुके हैं, उनकी जगह अब बिजली से चलने वाली आटा चक्कियों ने ले ली है। जिला कांगड़ा बैजनाथ तहसील के बीड़ गुनेहड़ के निवासी देवराज बताते हैं कि इनके द्वारा चलाए जा रहे घराट को 40 वर्ष से अधिक का समय हो चुका है। पहले इनके पिता द्वारा घराट को चलाया जाता था,अब इनके द्वारा इस परंपरा को जारी रखा है।
राजकुमार बताते हैं कि अभी भी उनके क्षेत्र में लोग घराट से पीसे हुए आटे का सेवन करते हैं। राजकुमार के पिता बताते हैं कि वह 1980 से घराट चला रहे हैं,पहले सभी लोग घराट के पिसे हुए आटे का ही सेवन करते थे, लेकिन जिस तरह से घराट विलुप्त होते चले गए उनकी जगह बिजली से चलने वाली चक्कियों ने ले ली। अब लोग उसमे पिसे हुए आटे का ही सेवन अधिकतर करते हैं। वह कहते हैं कि घराटों के विलुप्त होने का एक कारण नदी नालों के समीप बने घराटों में पानी के भारी उफान के चलते उनका बह जाना, व कुछ क्षेत्रों में पानी की कमी के चलते घराट बंद चुके है,इसके अलावा कारीगरों की कमी भी इसका मुख्य कारण है।
आटा पीसने के सैकड़ों घराट उजड़ चुके हैं, और जो बचें हैं वह अधिकतर समय तालाबंद रहते हैं। लोग अब खड्ड नालों में जाने की बजाय घर के नजदीक बिजली से चलने वाली चक्की में आटा पिसाते हैं।