आवाज़ ए हिमाचल
अभिषेक मिश्रा,बिलासपुर
19 मई।युवा वर्ग बुरी संगत के प्रभाव व दबाव में आ कर या किन्ही अन्य कारणों से तम्बाकू, शराब, भांग, कोकिन , अफीम, हशीष, पैथाडीन, कांपोज व ब्राउन शुगर इत्यादि नशे शुरू कर देते हैं। आरम्भ में मानसिक लुत्फ, अनुभव या झूठे सहारे के रूप में शुरू किया यह नशा बाद में शारीरिक निर्भरता वश छोड़ नहीं पाते और नशे के आदी हो जाते है। इससे रोकथाम करने के लिए मुख्य चिकित्सा अधिकारी डा प्रकाश दरोच ने कहा कि परिवार में मां-बाप किशोरों के सोने व जागने के समय पर ध्यान रखे , बच्चों की पढ़ाई में रूची बरकरार है या नहीं, अधिक समय टाॅयलेट में तो नहीं बिता रहें, स्कूल से गैर हाजर तो नहीं रह रहे, बैग व जेब में आपतिजनक व नशा सहायक सामग्री तो नहीं मिल रही, बच्चों के दोस्त किस तरह के हैं इन पर लगातार नजर रखना अति आवश्यक है।
उन्होंने इसके उपचार बताते हुए कहा कि नशे पर निर्भरता पा चुके व्यक्तियों की पहचान कर उन्हें नशे से आए विषकारी प्रभाव से मुक्ति दिलाने के लिए नजदीकी नशामुक्ति केन्द्र व अस्पताल में दाखला जरूरी है। नशा छोड़ने पर आए दर्द, बेचैनी जैसे लक्षणों का दर्द निवारक से उपचार तथा नशा मुक्ति उपरांत लगातार परामर्श, बूरी संगत, स्थान व परिवार व समाज के उनके प्रति साकारात्मक व्यवहार व व्यक्ति का काम में पुर्नस्थापन नशे की आदत को दोबारा आने से रोकने में सहायक हैं। उन्होंने बताया कि घृणा नशे से करें, व्यक्ति से नहीं। उन्होंने बताया कि जिला अस्पताल बिलासपुर में कमरा नंबर 308 में नशे के आदी हुए व्यक्तियों को नशे से छुटकारा दिलाने हेतू मनोवैज्ञानिक तरीके परामर्श तथा उपचार किया जाता है। उपचार के बाद रोगी पूरी तरह से ठीक हो जाता है।