आवाज़ ए हिमाचल
ब्यूरो,चंबा
16 अप्रैल।उपायुक्त डीसी राणा ने कृषि विभाग के अधिकारियों को निर्देश देते हुए कहा कि फसल काटने के बाद खेत खाली होते हैं और खाली खेत मे सिंचाई प्रणाली को स्थापित करने से फसल भी बर्बाद नही होती है। ऐसे में चूंकि इस समय गेहूं की फसल कटने वाली है विभाग किसानों को सूक्ष्म (माइक्रो) सिंचाई योजना के बारे में जानकारी और सुविधा उपलब्ध करने के लिए एक समयबद्ध मुहिम चलाए।
उपायुक्त ने आज कृषि विभाग द्वारा संचालित सिंचाई योजना की समीक्षा करते हुए कहा कि विकास खंड भटियात को छोड़कर जहां 26 फीसदी क्षेत्र सिंचाई के अंतर्गत आता है, बाकी के विकास खण्डों में केवल 0.8 से लेकर 6 फीसदी कृषि क्षेत्र में ही सिंचाई सुविधा उपलब्ध होना संतोषजनक नहीं है।
उन्होंने यह भी कहा कि सिंचाई सुविधा न होने के कारण फसल उत्पादन में अनिश्चितता की स्थिति बनी रहती है। सूखे की स्थिति के कारण इस बार असिंचित क्षेत्रों में गेहूं की फसल के उत्पादन में कमी की आशंका है। उपायुक्त ने कहा कि बहाव सिंचाई सुविधा से अधिक पानी उपलब्ध होने के चलते किसान जरुरत से अधिक देर तक खेतों में पानी देते हैं तो भी फसल उत्पादन में कमी आती है। इसके अलावा पानी की बर्बादी भी होती है सूक्ष्म सिंचाई व्यवस्था होने से जहां फसल को जरूरत के मुताबिक पानी मिलता है वही पानी का अनावश्यक नुकसान भी नहीं होता।
उन्होंने कहा कि जिन किसानों के पास सिंचाई के लिए पानी का स्रोत है वे सभी किसान उप मंडलीय भू संरक्षण अधिकारी चम्बा या बनीखेत के कार्यलय में अपनी जमीन की जमाबंदी, ततिमा व आधार कार्ड ले कर जाएं। इसके अलावा यह सुविधा प्राप्त करने के लिए किसान किसी भी नजदीकी कृषि कार्यालय से भी संपर्क कर सकते हैं। उपायुक्त ने कृषि उप निदेशक को निर्देश देते हुए कहा कि विभाग इसको लेकर बाकायदा लक्ष्य तय करके काम करे ताकि इसे जमीनी हकीकत पर उतारा जा सके।
कृषि उप निदेशक डॉ कुलदीप धीमान ने उपायुक्त को अवगत करते हुए बताया कि कृषि विभाग द्वारा कार्यान्वित सिंचाई योजना को और प्रभावी तरीके से किसानों के खेतों तक पहुंचाया जाएगा ताकि किसानों के खेतों में फसलों को सिंचाई के पानी की सही मात्रा मिले, ज्यादा क्षेत्र को सिंचाई सुविधा उपलब्ध हो और फसल उत्पादन भी बढ़े। योजना के अंतर्गत 80 फीसदी सहायता से किसानों के खेतों में सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली के जरिए फव्वारा सिंचाई व टपक सिंचाई इकाईयां स्थापित की जाती हैं।
यह इकाई स्थापित करने से पहले किसान को कुल खर्चे की केवल 20 फीसदी धनराशि ही संबंधित सेवा प्रदाता कंपनी को देनी पड़ती है।
डॉ कुलदीप धीमान ने यह भी जानकारी दी कि किसानों द्वारा दी गयी 20 फीसदी धनराशि की भरपाई आने वाली पहली फसल की पैदावार में बढ़ोतरी से हो जाती है।