आवाज ए हिमाचल
अभिषेक मिश्रा,बिलासपुर
04 फरवरी। गेहड़वीं विस क्षेत्र के गांव क्यारी में चल रही महाशिवपुराण कथा के छठे दिन प्रवचनों की अमृत वर्षा करते हुए विज्ञान पंडित सुरेश भारद्वाज ने कहा कि शंख जल से शिव की अर्चना नहीं की जाती। इस दौरान उन्होंने एक रोचक प्रसंग का वर्णन करते हुए बताया कि पूर्व काल में महा पराक्रमी शंखचूढ़ नामक एक दैत्य हुआ, शंखचूड़ किसी से मर नहीं रहा था। यही नहीं अपनी अभिमानी सोच के कारण वह दिन प्रतिदिन अत्याचारी हो रहा था। उन्होंने बताया कि शंख चूढ़ ने कठोर तपस्या कर ब्रह्मा से वरदान प्राप्त किया था कि उसका वध केवल भगवान शंकर के हाथों ही होगा। कालांतर परिवर्तन के बाद शंखचूढ़ और भगवान शंकर की शत्रुता बढ़ती गई। भगवान शंकर ने युद्ध में शंखचूढ़ दैत्य का वध कर दिया।
यही कारण है कि त्रिपुरारी को शंखचूढ़ की हड्डियों से निमित जल तक मान्य नहीं है। पंडित सुरेश भारद्वाज ने बताया कि शंखचूढ़ की हड्डियों से शंख नाम जाति उत्पन्न हुई। बाद में शंखचूढ़ तुलसी का पति कहलाया। उन्होने बताया कि भगवान विष्णु को तुलसी अति प्रिय है। इसीलिए तुलसी के पति की हड्डियों से निमित शंख से विष्णु भगवान का पूजन विशेष फलदाई माना जाता है जबकि शिव को यह ग्राहय नहीं है। पंडित सुरेष भारद्वाज ने बताया कि शंख से स्पर्श की गई वस्तुओं से भी भगवान सही की पूजा न करें। यही कारण है कि भगवान शिव की पूजा में शंख नहीं बजता है। कथा समापन के बाद महिलाओं द्वारा भोले के सुंदर भजन गाए गए तथा प्रसाद वितरित किया गया।