पिछले चुनावों पर नजर दौड़ाएं तो वर्ष 1967 तथा 1972 में यहां से कांग्रेस के हरी राम चौधरी विधायक बने तो 1977 में जनता पार्टी की टिकट पर प्रताप चौधरी चुनाव जीते। 1982, 1985 व 1990 में भाजपा के विद्यासागर चौधरी ने चुनाव में विजय प्राप्त कर हैट्रिक बनाई तो 1993 में कांग्रेस के दौलत चौधरी विधायक बने । 1998 में एक बार फिर चौधरी विद्यासागर चुनाव जीते और मंत्री बने। वर्ष 2003 में कांगड़ा की जनता ने कांग्रेस के चौधरी सुरेंद्र काकू पर विश्वास जताया तो 2007 में कांगड़ा ने बहुजन समाज पार्टी के संजय चौधरी को सिर आंखों पर बिठाया। 2012 में निर्दलीय मैदान में उतरे चौधरी पवन काजल सब पर भारी पड़े तो 2017 में पवन काजल कांग्रेस की टिकट पर फिर से चुनाव जीत विधानसभा में पहुंचे। अब काजल के भाजपाई हो जाने उपरांत यूं तो कांगड़ा में कांग्रेस टिकट के लिए कई लोग सामने आने लगे हैं परन्तु सूत्रों की मानें तो कांग्रेस का प्रदेश नेतृत्त्व किसी अन्य फार्मूले पर मनन कर गैर चौधरी प्रत्याशी मैदान में उतारने पर भी विचार कर रहा है। ऐसे में कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता व कोषाध्यक्ष डा राजेश शर्मा तथा पार्टी के प्रदेश सचिव नवनीत शर्मा में से किसी एक पर दांव खेला जा सकता है। इससे कांग्रेस यह सन्देश देने में भी कामयाब हो सकेगी कि पार्टी सब वर्गों को साथ लेकर चलने में विश्वास रखती है। डा राजेश पहले भी निर्दलीय चुनाव लड़ करीब 12 हजार मत प्राप्त कर अपना आधार दिखा चुके हैं। डा राजेश शर्मा क्षेत्र का एक बड़ा नाम है तथा समय समय पर वह लोगों की हर तरह से मदद भी करते रहते हैं। नवनीत शर्मा कांग्रेस के प्रदेश सचिव हैं तथा ब्लाक समिति कांगड़ा के अध्यक्ष भी रहे हैं। वह कई सामाजिक संस्थाओं से जुड़े हैं तथा इनकी पहचान एक समाजसेवी के रूप में भी की जाती है। यह भी चर्चा है कि कांग्रेस से भाजपा में गए पूर्व विधायक सुरेंद्र काकू तथा पूर्व विधायक संजय चौधरी पर भी कांग्रेस की नजर है। यह दोनों भी काजल के भाजपा में आने से नाखुश हैं। बताते हैं कि इन दोनों के भी कांग्रेस से तार भिड़े हुए हैं।