आवाज़ ए हिमाचल
शिमला। हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार से पूछा है कि गोविंद सागर झील से मलबा बाहर निकलने के लिए उनके पास क्या कारगर योजना है। पिछली सुनवाई के दौरान कोर्ट ने झील में किसी भी तरह की डंपिंग करने पर तुरंत प्रभाव से रोक लगा दी थी। मुख्य न्यायाधीश एमएस रामचंद्र राव व न्यायाधीश अजय मोहन गोयल की खंडपीठ ने फोरलेन विस्थापित और प्रभावित समिति के महासचिव मदन लाल द्वारा दायर जनहित में याचिका पर ये आदेश पारित किए। प्रार्थी के अनुसार नेशनल हाइवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया ने ठेकेदार को किरतपुर-मनाली सडक़ को चौड़ा करने का कार्य सौंपा है। स्थानीय लोगों के कठोर विरोध के बावजूद भाखड़ा बांध जलाशय में अवैध रूप से सडक़ का मलबा फेंका जा रहा है। इसके बारे में स्थानीय प्रशासन और एनएचएआई को कई शिकायतें की गई हैं। प्रार्थी के अनुसार बिलासपुर के बरमाणा और तुनहु में एम्स के पास मलबे को डंप किया जा रहा है। इसके अलावा रघुनाथपुरा-मंडी-भराड़ी सडक़ को चौड़ा करते समय मलबे को बिलासपुर जिला में भाखड़ा बांध के जलाशय में अवैध रूप से डंप किया जा रहा है।
प्रार्थी के अनुसार अवैध डंपिंग से न केवल पर्यावरण को नुकसान हो रहा है, बल्कि झील में मछलियों की कमी भी देखी जा रही है। इसका मुख्य कारण झील में अवैध डंपिंग से गाद के स्तर में वृद्धि है। गाद की वजह से बिलासपुर जिला के सबसे बड़े जल निकाय गोविंद सागर में विभिन्न मछली प्रजातियों के प्रजनन को नुकसान पहुंचाया गया है। 51 मछली प्रजातियों जैसे कि सिल्वर कार्प, सिंहाड़ा, महाशीर और जीआईडी के साथ गोविंद सागर राज्य के महत्त्वपूर्ण मत्स्य पालन का केंद्र था। अवैध डंपिंग के कारण यहां अब मछलियों के प्रजनन में भी कमी दर्ज की गई है। हिमाचल प्रदेश रोड एंड इन्फ्रास्ट्रक्चर डिवेलपमेंट कॉरपोरेशन के ठेकेदार पर मंडवान और अन्य नालों में मलबे के ट्रक को खाली करने का आरोप लगाया गया है। प्रार्थी ने अदालत से गुहार लगाई है कि गोविंद सागर में अवैध डंपिंग पर तुरंत प्रभाव से रोक लगाई जाए और दोषी लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए। मामले पर आगामी सुनवाई 20 जुलाई को निर्धारित की है।