सेम सेक्स मैरिज मामले में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी, संवैधानिक अधिकार नहीं है शादी

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आवाज़ ए हिमाचल

 नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट में समलैंगिक विवाह के मामले में मंगलवार को आठवें दिन एक बार फिर सुनवाई हुई। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने शादी को लेकर कई अहम टिप्पणियां कीं। जस्टिस एस रवींद्र भट्ट ने कहा कि भारत का संविधान ‘लकीर का फकीर’ विचार को ध्वस्त करने वाला है। अपने आप में ‘पुरातन परंपरा तोडऩे वाला’ है। हमारा संविधान उन परंपराओं और पुरातन विचारों को तोड़ता गया है, जो कभी हमारे समाज में रचे बसे थे या किसी जमाने में जिसे पवित्र माना जाता था। उन्होंने कहा कि संविधान ने जाति व्यवस्था तोड़ी, छुआछूत पर प्रतिबंध लगा दिया गया। दुनिया में ऐसा कोई अन्य संविधान नहीं है जो ऐसा करता हो। बता दें कि समलैंगिक विवाह को मान्यता देने की मांग वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ सुनवाई कर रही है। सीजेआई धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस एसआर भट्ट, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस हिमा कोहली की बेंच को सुनवाई के लिए गठित किया गया है।

सीजेआई ने कहा कि यह कहना सही नहीं है कि संविधान के तहत शादी करने का अधिकार नहीं है। विवाह के मूल तत्वों को संवैधानिक मूल्यों के तहत संरक्षण है। धर्म की आजादी के तहत विवाह की उत्पत्ति का पता लग सकता है, क्योंकि हिंदू कानूनों के तहत यह पवित्र है और ये कोई अनुबंध नहीं है। हालांकि, विवाह और उसके पहलुओं को नियंत्रित करना सरकार का काम है, लेकिन इसकी जांच की जानी चाहिए कि क्या विषमलैंगिकता विवाह का एक प्रमुख तत्व है। संवैधानिक अधिकार नहीं है विवाह मंगलवार का सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि यह कहना तो दूर की कौड़ी होगी कि शादी करने का अधिकार संवैधानिक अधिकार नहीं है। विवाह के प्रत्येक मूल तत्व को संवैधानिक मूल्यों द्वारा संरक्षित किया गया है। इस दौरान वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी ने मध्य प्रदेश राज्य के लिए अपनी दलीलें देने के सिलसिले में स्पाउस को डिस्क्राइब करते हुए एक कंपाइलेशन कोर्ट को दिया।

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