लेखक रतन चंद रत्नेश ने किया बंगाल की कालजयी ‘महाभारत’ का अनुवाद

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मुंबई व मेरठ से संवाद प्रकाशन के सौजन्य से प्रकाशित की पुस्तक

आवाज़ ए हिमाचल

अभिषेक मिश्रा, बिलासपुर। हिमाचल के हमीरपुर जिला के गांव घनसुई के मूल निवासी रतन चंद ‘रत्नेश’ ने बंगाल की कालजयी पुस्तक ‘महाभारत’ का श्रमसाध्य अनुवाद किया है, जो हाल ही में मुंबई और मेरठ से संवाद प्रकाशन के सौजन्य से प्रकाशित हुआ है।

कहानी, लघुकथा, व्यंग्य, कविता आदि विधाओं में समान रूप से लिखनेवाले रत्नेश ने बिलासपुर में एक पुस्तक का विमोचन करने के दौरान बताया कि उन्होंने बांग्ला से कई रचनाओं का अनुवाद किया है और ‘महाभारत’ इनमें सबसे बड़ा अनुवाद है। इस 756 पृष्ठ के अनुवाद में प्रतिदिन 3 से 4 घंटे लगाकर उन्होंने लगभग डेढ़ वर्ष में इसे पूरा किया है। यह बंगाल में सर्वाधिक पढ़ी जाने वाली पुस्तक है जिसे सुप्रसिद्ध लेखक राजशेखर बसु ने लिखा है और इसका पहला संस्करण 1949 में प्रकाशित हुआ था। तब से इसके सोलह से भी अधिक संस्करण आ चुके हैं। रत्नेश ने बताया कि अन्य लिखे गए महाभारत से यह इस मायने में अनूठा है कि इसमें हर घटना या प्रसंग के पीछे कोई न कोई दिलचस्प कहानी दर्ज है जिससे कई लोग अनजान है। अन्य किसी महाभारत में ये आख्यान और उपख्यान नहीं मिलेंगे।

इस पुस्तक की जनप्रियता इस बात से भी सिद्ध होती है कि न सिर्फ हिंदू पाठकों बल्कि पश्चिम बंगाल और बांग्ला देश के मुस्लिम पाठक भी इसे हाथोंहाथ ले चुके हैं। बांग्लादेश के सुप्रसिद्ध कथाकार और वहां के राजशाही विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर रहे हसन अज़ीज़ुल हक कहते हैं – ‘यह मेरी प्रिय पुस्तक है। जब भी इच्छा हो मैं इसे पढ़ते हुए इसमें डूब सकता हूं। मूल महाभारत पूरी तरह पढ़ना संभव नहीं, विरक्ति हो जाती है क्योंकि उसकी शाखाएं-उपशाखाएं इतनी विस्तृत हैं कि ऐसा लगता है कि हजारों वृक्ष हैं। राजशेखर बसु ने इन शाखाओं की भलीभांति कांट-छांट की है और इसके मूल को बनाए रख इसका सारानुवाद किया है। इसीलिए मैं सिर्फ इसे ही पढ़ता हूं और यही एक महाभारत मेरे पास है।’
प्राचीनकाल की इस अन्यतम श्रेष्ठ कृति का संपूर्ण पाठ साधारण मनुष्यों के लिए तो और भी दुष्कर है। राजशेखर बसु ने इस कष्टसाध्य महाभारत की आत्मा को अक्षुण्ण रख इसका संक्षिप्त रूप पाठकों के लिए सुलभ कराया है। इसमें मूल महाभारत के प्रायः समस्त आख्यान और उपख्यान समाहित हैं। साधारण पाठकों के लिए जो मनोरंजक नहीं, उसे छोड़ दिया गया है, जैसे कि विस्तारित वंशवर्णन या पुनरुक्त विषय। औपन्यासिक शैली में निरपेक्ष भाव से लिखा गया यह महाभारत उनके लिए भी रुचिकर होगा जो इसे पहली बार पढ़ेंगे और निस्संदेह यह शोधार्थियों के लिए भी सहायक होगा।

रत्नेश कहते हैं कि सिर्फ आख्यान और उपाख्यान के कारण ही नहीं, यह हमारे वर्तमान जीवन को बेहतर बनाने में भी अहम भूमिका निभाएगा, इस पुस्तक का कोई भी पृष्ठ खोल लें, इसमें दिलचस्प कथाओं और प्रेरक-प्रसंगों का अद्भूत सुमेल है। यहां तक कि लक्ष्य साधने के गुरुमंत्र भी इसमें शामिल हैं।

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