आवाज़ ए हिमाचल
अभिषेक मिश्रा ( बिलासपुर )
10 जनवरी। कहते हैं कि संस्कृति और संस्कारों को भूलने वाली पीढ़ियों का कोई वजूद नहीं रह जाता , एक समय में वह भी अज्ञात जीवन जीने को बाध्य हो जाती हैं। लेकिन बिलासपुर शहर से ताल्लुक रखने वाली युवा लेखिका समय.समय पर अपने सामाजिक दायित्व का निर्वहन करते हुए अपने क्रियाशील विचारों की उधेड़बुन में समाज के अस्तित्व को बनाए रखने में लगी रहती हैं। भाखड़ा विस्थापितों के दर्द को शिद्दत से अंग्रेजी भाषा को ढाल बनाकर कागज पर उकेरने वाली प्रो. अभ्युदिता गौतम सिंघा अपनी बहुचर्चित पुस्तक सब मर्जड एंड रिहेबलीटेटिड की अपार सफलता के बाद ए टाउन अंडर द लेक किताब लेकर नई पीढ़ी के सामने प्रस्तुत हुई है। खास बात यह है कि डिजिटल जमाने में यह पुस्तक डिजीटल फार्मेट में भी उपलब्ध रहेगी। हालांकि लेखिका की सोच इस किताब में उनकी मेहनत को तो बयां कर ही रही है साथ ही बिलासपुर के गौरवमयी इतिहास को भी अग्रेषित करने में सार्थक साबित होगी।
39 अध्याय और 52 पृष्ठों में अभ्युदिता ने जलमग्न शहर की यादों से लेकर नए शहर के एम्स और बंदला धार के पाल्म ट्री रेस्टोरेंट व देश के प्रथम हाईड्रो इंजीनियरिंग कालेज का उल्लेख तीन भागों में (कहलूर किंगडम, वैदिक व्यासपुर, न्यू बिलासपुर टाउन शिप) कर बिलासपुर जिला को गौरवान्वित किया है। छोटी से आयु में सामाजिक और पारिवारिक दायित्वों का निर्वहन करते हुए अपने जिले की संस्कृति के संग्रहण के लिए समय निकालना और उन्हें एक सूत्र में पिरोकर अभ्युदिता ने अदभुत कार्य को साकार किया है। ए टाउन अंडर द लेक पुस्तक में इन्होंने बिलासपुर की भौगोलिक, राजनीतिक, धार्मिक, कालांतर परिवर्तन की घटनाएं और रोचक तथ्यों पर प्रकाश डालने की सफल कोशिश की है। इस किताब की खासियत यह भी है कि पुराने और नए चित्रों से सुस्सजित इस पुस्तक के जब पहले पन्ने को पलटा जाता है तो हर परिवेश का पाठक यादों में इस कदर डूब जाता है कि वह पुस्तक के अंत तक पहंुचने से पहले उसे हर एक पन्ने का सफल जिज्ञासावश लाजमी हो जाता है।
धार्मिक प्रकरण में मार्कडेंय मंदिर से व्यास गुफा का संबंध, सात धारों से घिरे बिलासपुर का विवरण, कहलूर रियासत की वंशावली, भोले भाले युवक मोहणा की सजा, हाॅकी व अन्य खेलों से जुड़ी गतिविधियां, डिग्री कालेज, स्कूल, अस्पताल, रंगमहल, पुराने शहर में इंडियन नेशनल कांग्रेस के अध्यक्ष यूएन ढेबार और पूर्व पीएम इंदिरा गांधी की रंगनाथ मंदिर के पास विशाल रैली, देश के बड़े राजनेताओं की बिलासपुर के राजा के साथ बैठकें, नाले रा नौण, पठे रा फेर, डूबता हुआ शहर की तस्वीरें इस किताब में अतीत की मीठी यादों का रस घोलती हैं। किताब कुछ हिंदी भाषा और पहाड़ी की कविताएं विस्थापन और पलायन के दर्द को बयान करती हैं। लेखिका अभ्युदिता मूलतः बिलासपुर शहर की रहने वाली है। उनके पिता सेवानिवृत्त कर्नल अम्बा प्रसाद और माता देव गौतम गृहणी हैं। पिता के फौजी अफसर होने के कारण उनकी स्कूली पढ़ाई सेंट मैरी स्कूल कसौली,
आर्मी पब्लिक स्कूल डगशाई, डीएवी स्कूल बिलासपुर और उच्च शिक्षा स्नातकोत्तर विद्यालय बिलासपुर और एमए पंजाब यूनिवर्सिटी जैसे भिन्नण्भिन्न स्थानों पर हुई। इन दिनों अभ्यूदिता गौतम महाविद्यालय नगरोटा बगवां में अंग्रेजी की प्रोफेसर पद पर अपनी सेवाएं दे रही हैं। छोटी से आयु से लेखन कार्य से जुड़ी अभ्युदिता गौतम सिंघा ने साहित्य की दुनिया में निरंतर उन्नति कर रही है। अभ्युदिता का कहना है कि उन्होंने किताब को अंग्रेजी में लिखना इसलिए चुना क्योंकि अंग्रेजी में बिलासपुर की संस्कृति के बारे में न के बराबर लिखा गया है और वो हिमाचली संस्कृति को युवा पीढ़ी और ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाना चाहती हैं। इस किताब का अंग्रेजी में होने के कारण देश विदेश में पढ़ने और शोध के लिए लिए भी इसका इस्तेमाल किया जा सकता है। जिससे हमारी हिमाचली संस्कृति जानने की इच्छा रखने वालों को आसानी से उपलब्ध होगी और यह कहलूरियों के लिए गौरव की बात है।