आवाज ए हिमाचल
15 मई। फार्मा उद्योगों पर दोहरी मार पड़ रही है। कच्चे माल यानी एक्टिव फार्मास्युटिकल इन्ग्र्रेडिएंट की कमी तो है ही, इसके दाम भी बढ़े हैं। इससे दवाओं का पैकिंग मैटीरियल महंगा हुआ है। अधिकतर पैकिंग मैटीरियल बद्दी में ही तैयार होता है। इनका कच्चा माल बाहर से आता है। पैकिंग में सबसे अधिक प्रिंटेड फॉयल का इस्तेमाल होता है। इसके दाम 275 रुपये किलो से बढ़कर 480 रुपये किलो तक पहुंच चुके हैं। फॉयल के साथ पीवीसी शीट का इस्तेमाल टैबलेट की पैकिंग के लिए किया जाता है।
पीवीसी शीट के दाम 90 रुपये किलो से 180 रुपये किलो हो गए हैं। खाली जिलेटिन कैप्सूल का दाम भी लगातार बढ़ रहा है। कोरोना काल से पहले की बात करें तो 70 रुपये के 100 जिलेटिन कैप्सूल आ जाते थे। अब 100 जिलेटिन कैप्सूल 120 रुपये में पड़ रहे हैं। महंगे दाम पर भी जिलेटिन कैप्सूल की आपूर्ति समय पर नहीं हो रही है। जीवनरक्षक दवाओं के उत्पादन में प्लास्टिक की बोतल का बड़े स्तर पर इस्तेमाल होता है। विभिन्न आकार की प्लास्टिक की बोतल के दाम में 30 प्रतिशत तक का इजाफा हुआ है। अग्रिम राशि दिए जाने के बाद भी दवा उत्पादकों को समय पर आपूर्ति नहीं हो रही है।