आवाज ए हिमाचल
अभिषेक मिश्रा,बिलासपुर
04 मई। जिला कांग्रेस महासचिव संदीप सांख्यान ने कहा कि प्रदेश के माननीय मुख्यमंत्री के साथ 24 अप्रैल 2021 को निजी डिपो होल्डरों और सहकारी समितियों का एक प्रतिनिधिमंडल मंडल अपनी समस्याओं को लेकर प्रदेश के मुख्यमंत्री से मिला था, प्रदेश के मुख्यमंत्री ने उनकी समस्याओं के लेकर आश्वस्त भी किया लेकिन अभी तक कुछ भी हल सम्भव नहीं हो पाया है। उन्होंने कहा कि प्रदेश में पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम को लेकर कोविड 19 के चलते सबसे पहले तो बॉयोमीट्रिक प्रणाली या मशीन पर थंब इम्प्रेशन या अंगूठा लगाने वाली प्रक्रिया बंद की जानी चाहिए क्योंकि बड़े बुजुर्गों का राशन के डिपुओं पर जाना संभव नहीं हो पा रहा है।
निजी डिपुओं और सहकारी संस्थाओं का लाभांश पिछले कई वर्षों से 2.5 प्रतिशत ही चल रहा है जो कि कम से कम 5 प्रतिशत किया जाना चाहिए,क्योंकि एपीएल राशनकार्ड धारकों में जो लोग सिर्फ इनकम टैक्स की रिटर्न भरते है उनको अब इन डिपुओं और सोसायटियों पर बाजारी भावों पर ही राशन मिल रहा तो ऐसे में अब एपीएल में सिर्फ इनकम टैक्स रिटर्न भरने वाले क्यों सहकारी सोसाइटियों या डिपो होल्डरों से राशन क्यों लेंगे, तो ऐसे में निजी डिपो होल्डरों की बिक्री में गिरावट आना लाज़मी है और दूसरी तरह आम आदमी जो सिर्फ पैन कार्ड धारक है और सिम्पली इनकम टैक्स की रिटर्न भरता है इनकम टैक्स देता नहीं है उसको भी बाजार का रुख करना पड़ रहा है और वह क्यों सहकारी सोसायटी या निजी डिपो धारकों के सामने लाइन में लगेगा।
इस पूरे क्रम में जो निजी डिपो धारक एक महीने में 100 क्विंटल आटा बेचता था अब उसकी बिक्री करीब 70 क्विंटल ही प्रति माह रह गई है और अन्य राशन सामग्री पर 30 से 40 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है। ऐसे में हम यदि तुलनात्मक अध्ययन भी करें वर्ष 2003 में प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी तो तत्कालीन सरकार ने हिमाचल के सभी बाशिंदों को 120 करोड़ रुपये की राशन में अनुदान राशि दी गई थी और लोंगो को एक बड़ी राहत भी इससे मिली थी लेकिन अब हालात विपरीत हो चले है क्योंकि प्रदेश सरकार की खाद्य व आपूर्ति विभाग की इस नीति के कारण डिप्पु धारक, सहकारी सभाएं और आम लोग भी ठगे जा रहे हैं। चूंकि खाद्य व आपूर्ति मंत्री बिलासपुर जिला से हैं उनको इस जनसमस्या को समझते हुए प्रदेश के मुख्यमंत्री से मशबरा करके तुरत डिप्पु धारकों, सहकारी सभाओं और आमलोंगो की तरफ देखना चाहिए। वैसे भी यह मसला हर गांव, हर गली-मोहल्ले और हर घर का है।