आवाज़ ए हिमाचल
18 फरवरी। डा. राजेंद्र प्रसाद मेडिकल कालेज टांडा में किडनी मरीजों का इलाज न होने से सुपर स्पेशियलिटी सेवाओं पर सवालिया निशान लग गया है। ऐसे में मरीजों की तकलीफ बढ़ी है और महंगे अस्पतालों में इन्हें इलाज करवाने पर विवश होना पड़ रहा है। यहां पिछले दो सालों से नेफ्रोलॉजिस्ट व डायलिसिस की सुविधा बंद पड़ी है। इससे किडनी के मरीजों की परेशानियां बढ़ी हैं। लोगों का कहना है कि इन सुविधाओं को शीघ्र चालू किया जाए, ताकि किडनी मरीजों की दिक्कत खत्म हो। दीगर है पिछले सालों में शुगर के मरीजों की तादाद बढ़ी है, इस वजह से किडनी के रोगों में भी इजाफा हुआ है। इस मसले पर अब इलाका की संस्थाओं ने भी मोर्चा खोल दिया है। नव निर्माण संघ के प्रदेश संयोजक अशोक गौतम व हिंदू राष्ट्रीय शक्ति के वरिष्ठ उपाध्यक्ष सुदेश सिहोंत्रा का कहना है कि यह मशीनें जल्द दुरुस्त करवाई जाएं और मरीजों का डायलिसिस चालू किया जाए। किडनी के मरीजों को महंगा डायलिसिस निजी अस्पतालों में करवाने पर मजबूर होना पड़ रहा है। मिली जानकारी के अनुसार किडनी फेल रोगियों का डायलिसिस चार से पांच हजार रुपए में हो रहा है।
अस्पताल सूत्रों ने बताया कि पहले टीएमसी में 500 रुपए में डायलिसिस की सुविधा उपलब्ध थी और उसके बाद सरकार ने इसे क्रिटिकल केयर में डाल दिया था, तो इसे निःशुल्क कर दिया। नतीजतन लोगों की दिक्कत खत्म हुई थी। हिमाचल प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सचिव अजय वर्मा कहते हैं कि यह सरकार की लापरवाही है कि यहां हजारों रुपए के भवन तो खड़े हैं, लेकिन नेफ्रोलॉजिस्ट की सुविधा उपलब्ध नहीं है। लोगों का कहना है कि सैकड़ों करोड़ रुपए खर्च कर बनाए गए इस सुपरस्पेशियलिटी हॉस्पिटल में तमाम सुविधाएं मुहैया हों, इसे सुनिश्चित किया जाए। डा. राजेंद्र प्रसाद मेडिकल कालेज टांडा के प्राचार्य डा. भानु अवस्थी का कहना है कि इस बारे सरकार को लिखा गया है कि नेफ्रोलॉजिस्ट का पद भरा जाए व मशीन को भी दुरुस्त कराया जाए या फिर पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप में नेफ्रोलॉजिस्ट का पद भरने की इजाजत दी जाए, लेकिन इस बारे कोई निर्णय न हो पाया है। सरकार बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं की बात तो कर रही है, लेकिन लोग महंगे इलाज करवाने पर विवश हैं। लोगों का कहना है कि बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध करवाकर जनता की परेशानी को खत्म किया जाए।
एक मशीन पड़ी खराब तो दूसरी कोई चलाने वाला नहीं
टांडा मेडिकल कॉलेज में डायलिसिस की दो मशीन उपलब्ध हैं, उनमें एक मशीन खराब पड़ी है और दूसरी ठीक है, लेकिन चलाने वाला कोई नहीं है। इसलिए मशीनें जंग खा रही हैं। कायदे अनुसार डायलसीस नेफ्रोलॉजिस्ट की निगरानी में ही होना है। इसके लिए टीएमसी के पास ट्रेंड टेक्नीशियन तो हैं, लेकिन नेफ्रोलॉजिस्ट नहीं है। इस बारे टीएमसी प्रशासन सरकार को अवगत करवा चुका है, लेकिन कोई हल नहीं हो पाया है।