आवाज ए हिमाचल
29 अप्रैल। अप्रैल के आरंभ से ही देशभर में कोरोना वायरस के संक्रमण के एक बार फिर व्यापक प्रसार के कारण हालात असामान्य हो चुके हैं। स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के बीच अर्थव्यवस्था भी प्रभावित हो रही है। हालांकि इस बार की पाबंदी कुछ इस तरह की है ताकि आर्थिकी पर असर कम से कम हो। इसी कड़ी में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने कोविड-19 के मद्देनजर सभी राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों से संक्रमण की चेन तोड़ने के लिए स्थानीय स्तर पर कंटेनमेंट ढांचे की रणनीति पर काम करने के लिए गाइडलाइंस जारी की है। जाहिर है कि दूसरी लहर से निपटने के लिए केंद्र सरकार माइक्रो-कंटेनमेंट जोन पर ध्यान केंद्गित करने के पक्ष में है और देशव्यापी लॉकडाउन पर विचार नहीं कर रही है। ऐसे में आर्थिक गतिविधियों पर असर 2020 की तुलना में कम रह सकता है।
फरवरी में टीकाकरण शुरू होने के साथ कोविड संक्रमण की स्थिति नियंत्रण में आती नजर आ रही थी और महामारी की वजह से गंभीर रूप से प्रभावित हुई भारतीय अर्थव्यवस्था फरवरी आते-आते पुन: संभलने लगी थी। लेकिन अप्रैल में मामले बढ़ने लगे और वायरस के प्रसार को रोकने के लिए पाबंदी लगाए जाने से हालात तेजी से बदले हैं और दूसरी लहर ने अर्थव्यवस्था को लेकर चिंता फिर से बढ़ा दी है। इससे अर्थव्यवस्था की रिकवरी को भी झटका लगने की आशंका है। हालांकि भारतीय अर्थव्यवस्था पर महामारी की दूसरी लहर के समग्र प्रभाव का अभी आकलन करना बहुत कठिन है, परंतु स्थानीय स्तर पर लगाए जा रहे लॉकडाउन के कारण अप्रैल-जून वाली पहली तिमाही में आर्थिक संवृद्धि पर नकारात्मक असर दिखाई दे सकता है। यदि जून तक हालात सामान्य नहीं होते हैं तो इसका असर पूरे साल की जीडीपी पर दिख सकता है।
यहां इस बात का जिक्र करना जरूरी है कि अमेरिकी ब्रोकरेज कंपनी बोफा सिक्योरिटीज के मुताबिक कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर को प्रभावी ढंग से निपटने के लिए भारत में अगर एक महीने का देशव्यापी लॉकडाउन लगाने की नौबत आती है तो सकल घरेलू उत्पाद में दो फीसद तक की गिरावट आ सकती है। बहरहाल केंद्र सरकार पिछले वर्ष जैसा देशव्यापी लॉकडाउन के पक्ष में नहीं है। वैसे भी मौजूदा आर्थिक हालात में सख्त लॉकडाउन र्तािकक नहीं है। पिछले वर्ष 25 मार्च से 31 मई के दौरान तालाबंदी से अर्थव्यवस्था पर बहुत बुरा असर पड़ा था।
संक्रमण की दूसरी लहर को रोकने के लिए राज्य सरकारों ने लॉकडाउन और वीकेंड कर्फ्यू जैसे जो कदम उठाए हैं इसका सबसे बड़ा असर र्सिवस सेक्टर पर पड़ा है। हालांकि पिछले वर्ष की तरह उद्योगों पर उतना असर नहीं पड़ा है। चूंकि अभी पूर्णतया तालाबंदी नहीं है और रेलवे, विमान सेवाओं समेत सार्वजनिक परिवहन को संचालित किया जा रहा है। केंद्र के साथ-साथ राज्यों की सरकारें भी औद्योगिक गतिविधियों को संचालित करने पर ध्यान दे रही हैं। हालांकि आंशिक रूप से लॉकडाउन लगाए जाने से श्रमिकों के साथ-साथ वस्तुओं की आवाजाही जरूर प्रभावित हो रही है। प्रतिबंधों के कारण खपत घट रही है, जो हमारी अर्थव्यवस्था का मूल आधार है। ऐसे में कहा जा सकता है कि स्थानीय स्तर पर लॉकडाउन के कारण लोगों की आवाजाही और कारोबारी गतिविधियों के प्रभावित होने से आने वाले महीनों में अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाना इतना आसान नहीं होगा। खासकर कोरोना से प्रभावित रेस्तरां, ऑटो, रियल एस्टेट, परिवहन एवं पर्यटन, मनोरंजन, लॉजिस्टिक्स और कंज्यूमर ड्यूरेबल्स को पूरी तरह से उबरने में एक से दो साल का समय लग सकता है। फिलहाल तो यह कह पाना कठिन है कि हालात कब तक सामान्य होंगे। जाहिर है कि अर्थव्यवस्था को लेकर एक तरह से अनिश्चितता की स्थिति पैदा हो गई है।
कुछ सेक्टर पर अधिक असर
इस बात की भी आशंका है कि महामारी की पहली लहर की तरह पर्यटन, हॉस्पिटैलिटी और एयरलाइंस पर दूसरी लहर का भी सबसे बुरा असर पड़ेगा। ब्रिटेन और जर्मनी समेत कई यूरोपीय देशों ने अपने नागरिकों को भारत जाने से बचने की सलाह दी है, जबकि घरेलू पर्यटन भी कोरोना के डर से घटने लगा है। भारत में भी कोविड संक्रमण के मामलों में रिकॉर्ड तेजी की वजह से लोग ज्यादातर घर में रह रहे हैं। वैश्विक लोकेशन तकनीक कंपनी ‘टॉमटॉम इंटरनेशनल’ के आंकड़ों के मुताबिक नई दिल्ली में ट्रैफिक की तादाद में 49 फीसद तथा मुंबई में 73 प्रतिशत की कमी आई है। यानी महामारी के दौरान लोगों की आवाजाही का रुझान कम हुआ है। गौरतलब है कि भारत की अर्थव्यवस्था में पर्यटन उद्योग का योगदान करीब 6.8 फीसद है। भारत में पर्यटन उद्योग से करीब 8.75 करोड़ लोग जुड़े हैं।
वर्ष 2018-19 के आंकड़ों के अनुसार यह कुल रोजगार का करीब 12.75 फीसद है। साथ ही यह कृषि, ट्रांसपोर्ट, हैंडलूम, एफएमसीजी सहित कई अन्य क्षेत्रों से भी जुड़ा है। इस कारण इन क्षेत्रों को भी नुकसान उठाना पड़ रहा है। इसमें कोई दो राय नहीं कि कोरोना की दूसरी लहर होटल-रेस्टोरेंट यानी हॉस्पिटैलिटी और टूरिज्म सेक्टर को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचा रही है, लेकिन मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में उम्मीद की किरण भी दिखाई दे रही है मसलन विदेशी कंपनियों समेत देशी कंपनियों ने भी पूरी सतर्कता के साथ मैन्युफैक्चरिंग यूनिट शुरू कर दी है। अब वो बंद नहीं होगी। ई-कॉमर्स के जरिये सामान लोगों तक पहुंचाने का तरीका भी ढूंढा जा चुका है, तो अब इकोनॉमी को पहले जितना झटका नहीं लगेगा। यहां इस बात का जिक्र करना जरूरी है कि भारत ही नहीं दुनिया में जहां भी कोरोना की दूसरी लहर आई है, कहीं भी मैन्युफैक्चरिंग बंद नहीं हुई है। कम से कम आम आदमी से जुड़ी चीजें लगातार बनाई जा रही हैं। उनकी खपत में कोई कमी नहीं है। इसलिए इकोनॉमी को पिछले साल जितना नुकसान नहीं होगा।