आवाज ए हिमाचल
शान्ति गौतम,बीबीएन
15दिसम्बर। देश के किसान आज सडक़ों पर उतरने को मजबूर हैं तो उसके लिए केंद्र सरकार पूरी तरह से जिम्मेवार है। किसान जब खेतों में फसल की बिजाई शुरू करता है तभी उसका संघर्ष शुरू हो जाता है तथा अब काले कानूनों ने किसानों की कमर तोडक़र रख दी है। यह बात भारतीय किसान संगठन के प्रदेशाध्यक्ष गोपाल , राज्य सचिव जितेंद्र शर्मा, नालागढ़ के मंडलाध्यक्ष जसविंद्र व बरोटीबाला के मंडलाध्यक्ष अनिल ने मंगलवार को पत्रकार वार्ता को संबोधित करते हुए कही। किसान नेताओं ने कहा कि केंद्र सरकार को किसानों के आगे झुकने में शर्म नहीं करनी चाहिए क्योंकि किसान ही सभी लोगों का पेट भरता है। उन्होंने कहा कि आज किसान सडक़ों पर उतरे हुए हैं तथा केंद्र सरकार इन किसानों की कम संख्या समझकर कमजोर न समझे।
साई जोन के अध्यक्ष निक्का राम व सचिव रवि ने कहा कि देश में 86 प्रतिशत ऐसे किसान हैं जिनके पास एक हैक्टेयर से भी कम भूमि है। ऐसे में वह अपनी नजदीक की मंडियों में ही अपना अनाज बेच देता है क्योंकि वह अपने अनाज को दूसरी मंडियों में नहीं ले जा सकता है। ऐसे में यह काला कानून छोटे किसानों के हित में नहीं हैं। यदि शीघ्र ही किसानों के साथ बातचीत नहीं की जाती है तो मजदूर भी किसानों के समर्थन में उतर सकते हैं । प्रदेशाध्यक्ष गोपाल ने कहा कि 1967 में तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने जय जवान जय किसान का नारा दिया था क्योंकि एक किसान का बेटा बार्डर पर भी तैनात है वहीं किसान का बेटा अन्न भी उगाता है। उन्होंने कहा कि पचास वर्ष पूर्व एक गेहूं की बोरी की कीमत 75 रूपए थी जबकि एक सरकारी मुलाजिम की वेतन 70 रूपए था तथा सीमेंट की कीमत 7 रूपए प्रति बोरी थी तथा एक हजार ईंटों की कीमत 30 रूपए थी। ऐसे में वर्तमान समय में इनकी तुलना की जाए तो आज सीमेंट की कीमत 400 रूपए से अधिक प्रति बोरी हो गई है जबकि मुलाजिमों का वेतन भी हजारों व लाखों रूपए में है जबकि किसानों की हालत बद से बदतर हो गई है। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार को यह नहीं समझना चाहिए कि जो किसान सडक़ों पर उतरे हैं वही विरोध में है लेकिन जो किन्ही कारणों से किसान घरों में हैं वह भी इस काले कानून के विरोध में हैं। इस मौके पर सचिव जितेंद्र शर्मा, नालागढ़ इकाई के अध्यक्ष जसविंद्र, साई जोन के अध्यक्ष निक्का राम, अनिल आदि मौजूद रहे।