उपनयन संस्कार से संस्कारित हुए 11 वटुक,संस्कार है भारतीय संस्कृति की धरोहर:प्रो. रत्न चन्द शर्मा

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आवाज़ ए हिमाचल

16 अप्रैल।भारतीय संस्कृति के मूलभूत आधार संस्कार हैं और इन्हीं संस्कारों के कारण उत्तम समाज का निर्माण होता है।आज समाज में जितनी भी कुरीतियों उत्पन्न हो रही हैं,उन सब का कारण संस्कार विहीनता है।हमारे शास्त्रों में प्राचीन परंपरा से ही जन्म से लेकर मरण तक होने वाले संस्कारों को ध्यान में रखकर कार्य किए जाते हैं, ताकि समाज उत्तम मार्ग पर स्थिर रहे। विदित रहे कि भारत में मुख्य रूप से 16 संस्कारों का विशेष वर्णन है, जिनका पाश्चात्य सभ्यता के प्रभाव से लगातार पतन हो रहा है। इन्हीं संस्कारों से युक्त समाज के निर्माण हेतु नादौन के फतेहपुर में स्थित पूज्य मौनी बाबा कुटिया आध्यात्मिक ट्रस्ट के द्वारा लगातार प्रयास किया जा रहा है।इसी क्रम में 13 और 14 अप्रैल को विविध स्थान से आए हुए 11 बटुकों का यज्ञोपवीत संस्कार किया गया।इस अवसर पर ट्रस्ट के अध्यक्ष प्रो. रत्न चन्द शर्मा की देखरेख में “व्यक्तित्व विकास में संस्कारों का महत्व” नाम की एक संगोष्ठी का आयोजन भी किया गया, जिसमें केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय देवप्रयाग के वैदिक विभागाध्यक्ष प्रो. शैलेन्द्र उनियाल ने ऑनलाइन माध्यम से मुख्य वक्ता के रूप में भाग लिया तथा बाल जीवन में यज्ञोपवीत संस्कार के महत्व को प्रतिपादित किया। इस अवसर पर प्रो. रत्न चन्द शर्मा ने संस्कारों को भारतीय संस्कृति का मूल बताया।उन्होंने कहा कि संस्कारों से संस्कारित व्यक्ति ही अपनी संस्कृति और समाज को संरक्षित कर सकता है।इसके अतिरिक्त प्रो. रविकांत शर्मा, आचार्य नरेश मलोटिया, डॉ. अमित सरोच, आचार्य देशबन्धु, शास्त्री सोमराज शर्मा सहित अनेक विद्वानों ने संस्कारों के महत्व को प्रतिपादित किया।इस संगोष्ठी की अध्यक्षता ऋषिकेश वाले स्वामी नित्यानंद गिरि जी महाराज ने की। उन्होंने बटुकों को यज्ञोपवीत के वैज्ञानिक और आधुनिक महत्व से अवगत करवाया। इस अवसर पर सभी 11 बटुकों के माता-पिता सहित समस्त बंधु बांधव उपस्थित रहे।इस अवसर पर मंच संचालक आचार्य नरेश मलोटिया ने बताया कि हमारी भारतीय परंपरा में संस्कारों के माध्यम से लोग उत्तम जीवन यापन करते थे, परंतु संस्कारों की विहीनता से समाज में लगातार कुरीतियों का बोलबाला हो रहा है।आए दिन नौजवान लड़के व लड़कियां नशा,आत्महत्या, डिप्रेशन सहित अनेक मानसिक व शारीरिक बीमारियोंऔर कुरीतियों से ग्रसित देखे जा रहे हैं,जिससे समाज और व्यक्ति का निरंतर पतन हो रहा है।अतः आज समय पुनः इस बात की ओर सूचित कर रहा है कि हम सब अपने भारतीय संस्कारों को अपनाएं, ताकि एक स्वस्थ और सफल समाज का निर्माण हो, जिससे व्यक्ति और समाज का एक उन्नत सामाजिक,आध्यात्मिक, आर्थिक, मानसिक व शारीरिक उत्थान सुनिश्चित किया जा सके।

 

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