अब कैंसर से लड़ने में सहायक फल काफल लगेगा बगीचों में

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आवाज़ ए हिमाचल  

16 नवंबर। कैंसर जैसी खतरनाक बीमारियों को रोकने में मददगार काफल के फल अब बगीचों में भी उगाए जा सकेंगे। आईआईटी मंडी के सहयोग से फल वैज्ञानिकों ने इस जंगली फल का बगीचा तैयार करने की तैयारी शुरू कर दी है। यह दावा है कि यह सूबे का ही नहीं बल्कि देश का पहला काफल उद्यान होगा, जो 2-3 साल में  फल देना शुरू कर देगा। यह जंगली औषधि युक्त फल है, जो 1500 से 2500 मीटर की ऊंचाई पर पाया जाता है,

और इन पेड़ों पर वर्ष में सिर्फ एक बार ही यह फल लगता है। अधिक ठंडक और गर्मी वाले इलाकों में काफल के पेड़ नहीं मिलते। यही कारण है कि लोग वर्ष में सिर्फ एक बार मिलने वाले इस फल की खरीदारी के लिए इंतजार में रहते हैं। स्वाद बढ़ाने के लोगों द्वारा काला नमक के साथ इस फल को खाना पसंद किया जाता है। काफल के बाहर एक रसीली परत होती है, जबकि अंदर एक छोटी सी सख्त गुठली होती है, लेकिन इस फल को गुठली सहित खाया जाता है।

सीजन में यह फल 400 रूपये किलो तक बिकता है। काफल का वैज्ञानिक नाम माइरिका एसकुलेंटा है। फल में मौजूद एंटी ऑक्सीडेंट तत्व पेट से संबंधित रोगों को खत्म करते हैं। इस फल से निकलने वाला रस शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ा देता है। निरंतर सेवन से कैंसर एवं स्ट्रोक जैसी बीमारियों का खतरा कम होता है। कब्ज या एसिडिटी में भी कारगर है।

 

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