भाजपा के मंत्री किसानों की मांगें मानने के अपेक्षा, बदनाम करने पर तुले

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आवाज ए हिमाचल

 17 दिसम्बर। प्रदेश युवा कांग्रेस महासचिव रजनीश मेहता ने कृषि कानूनों को लेकर मोदी सरकार पर जमकर लताड़ा है । उन्होंने कहा कि भाजपा के मंत्री किसानों की मांगें मानने के बजाएं उन्हें बदनाम करने पर तुले हुए हैं। सरकार ने उन्हें अहंकार का विषय बना दिया है और स्पष्ट इरादों के साथ उनकी चर्चा करने के बजाए भाजपा के मंत्री अन्नदाता को बदनाम करने की कोशिश की जा रही है । मेहता ने कहा कि एक तरफ सरकार के मंत्री किसानों की यूनियनों के साथ बातचीत कर रहे थे और दूसरी तरफ अन्नदाता को खालीस्थानी, पाकिस्तानी , नक्सली के रूप में कह रही है । हमारे किसानों के बेटे खेतों व सरकारी गोदामों में पसीना बहा रहे थे तथा उनके बेटे अंतरराष्ट्रीय सीमाओं की रखवाली कर रहे थे लेकिन यह सरकार इन बेबुनियाद शब्दों का इस्तेमाल करके उनका अपमान कर रही है ।

किसानों की कड़ी मेहनत और समर्पण के कारण भारत के कृषि क्षेत्र में कोरोना वायरस की महामारी के दौरान भी अच्छी वृद्धि देखी है लेकिन यह कानून मौत के वारंट के रूप में काम करेंगे और किसानों को नष्ट कर देंगे ।उन्होंने महामारी के दौरान इन कानूनों को अध्यादेश के रूप में लाने की आवश्यकता पर भी सवाल उठाए है।भारत के संविधान अनुच्छेद 123 के तहत अध्यादेश केवल तभी जारी किया जा सकता है जब तत्काल कार्यवाही की आवश्यकता हो लेकिन यह कृषि अध्यादेश बिल्कुल भी आवश्यक नहीं थे और किसानों से परामर्श किए बिना लाए गए थे । सरकार किसी भी क्षेत्र से संबंधित नीतियां बनाती है तो उस क्षेत्र से जुड़े लोगों से हमेशा सलाह ली जाती है लेकिन इन कानूनों के मामलों में किसानों को अंधेरे में रखा गया है तथा तानाशाही रवैया अपनाते जबरदस्ती काले कानूनों को थोप रहे हैं।

यह कानून संसद की विदेयक शक्ति से परे था क्योंकि कृषि राज्य के लिए एक मामला था और इसलिए मोदी सरकार के पास ऐसे कानून बनाने का कोई अधिकार नहीं था मेहता ने कहा कि किसानों और विपक्षी दलों के महीनों के कड़े विरोध के बावजूद सरकार ने कृषि कानूनों को निरस्त करने से इंकार कर दिया और इसे अपने अहंकार का मुद्दा बना लिया उन्होंने कहा कि एक लोकतंत्र में लोगों की आवाज हमेशा सर्वोच्च होती है लेकिन भाजपा के अनुसार भारत में अत्यधिक लोकतंत्र हैं उन्होंने कहा सरकार ने अब कानून के हर वर्ग पर चर्चा करने की पेशकश की है लेकिन जब इन बिलों को संसद में पेश किया गया तो उन्हें सांसदों द्वारा उठाए गए मुद्दों को हल करने की बजाय बिलों को पारित करने के लिए मजबूर किया गया है।

मेहता ने कहा मोदी सरकार का इतिहास है कि नोटबंदी और जीएसटी सहित बड़े फैसले भी आनन-फानन में लिए गए है लेकिन उन्होंने हमेशा लोगों को नुकसान ही पहुंचाया है और इन कानूनों के साथ भी ऐसा ही होगा उन्होंने कहा कि मोदी सरकार से केवल कुछ ही पूंजीपति खुश थे जबकि दलितों, आदिवासियों ,छात्रों, शिक्षकों ,अल्पसंख्यकों ,किसानों और मजदूरों सहित सभी लोग इनके दमनकारी नीतियों का विरोध कर रहे थे उन्होंने मांग की कि सरकार को तुरंत संसद का शीतकालीन सत्र बुलाकर इन कानूनों को रद्द करना चाहिए ।

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