नए कृषि कानूनों के विरोध के लिए भड़काने की कोशिशें जारी

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आवाज ए हिमाचल 

           30 दिसम्बर। हमारे देश की सबसे बड़ी पीड़ा यही रही है कि कृषि प्रधान होने के बावजूद कृषि अर्थव्यवस्था से जुड़ा देश का अन्नदाता किसान आत्महत्या को मजबूर होता रहा है। देश की करीब 70 फीसद आबादी की रोजी-रोटी जहां कृषि पर निर्भर है, वहीं देश की जीडीपी में कृषि का योगदान मात्र 16 फीसद है। बीते वर्षो में देश के हुक्मरानों ने किसानों के हित में नारे तो बहुत दिए, लेकिन आत्महत्या करते किसानों के कंधों पर हाथ रखकर इतनी भी तसल्ली न दे सके कि अन्नदाता स्वयं को खत्म करने की उपजी आत्मग्लानि से स्वयं को ही बचा पाता।वर्ष 2022 तक कृषि आय को दोगुना करने की बात करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कृषि में बदलाव के साथ कृषि सुधार के तीन कानून लागू करने के बात कही तो राजनीतिक दलों ने किसानों के कंधों पर बंदूक रखकर उन्हें पुरानी अभावों वाली जिंदगी में बने रहने एवं नए कानूनों के विरोध के लिए भड़का दिया है।

कृषि में सुधार के लिए विगत तीन वर्षो से केंद्र सरकार द्वारा फसलों के समर्थन मूल्य में निरंतर वृद्धि की जा रही है। फसलों को प्राकृतिक आपदा सहित अन्य नुकसानों से बचाने के लिए उसके फसल बीमा कवच को प्रभावी बनाने हेतु निरंतर बदलाव किए जा रहे हैं। लेकिन कुछ किसान संगठन हैं कि वे न केवल अपने अड़ियल रुख पर कायम हैं, बल्कि वह अपनी आंदोलन सूची में कई ऐसी मांग भी जोड़ते जा रहे हैं जिनका कृषि सुधार कानून से दूर दूर का वास्ता नहीं ह

देश के प्रतिष्ठित उद्योगपतियों का कल्पनाओं के आधार पर विरोध, उनके उत्पादों के बहिष्कार के लिए देश के किसानों को उकसाना आंदोलनकारी संगठनों की अपरिपक्ता को ही दर्शाता है। हमें यह समझना होगा कि देश को उद्योगपति एवं किसान दोनों की जरूरत है। बगैर उद्योगों के न तो कृषि उत्पादों का प्रंस्करण हो सकता है और न ही अच्छा निर्यात। किसानों को मंडी कानून की उस पुरानी व्यवस्था को भी समझना चाहिए, जिसमें मंडी अधिनियम के तहत किसान अपनी उत्पादित फसल को स्थानीय मंडी को छोड़कर दूसरे जिले की मंडियों में बेचने के लिए स्वतंत्र नहीं था। कितनी बड़ी विडंबना थी कि किसान अपने ही खेत की मिट्टी से उत्पादित आनाज को देश के दूसरे राज्य में रहने वाले अपने नागरिकों तक पहुंचाने में मंडी टैक्स जैसी व्यवस्थाओं से प्रतिबंधित था।

नए कानून ने आज देश के किसान को अपनी फसल को देश के प्रत्येक कोने तक ले जाने एवं बेचने की पूर्ण आजादी दी है। फसल बिकवाली में सीमित मंडी व्यवस्था में जहां किसानों को कई दिनों तक सड़कों पर बैठकर इंतजार करना होता था, समय की बर्बादी, ठंडी, गर्मी एवं बारिश के संकट से अपने उत्पाद के साथ स्वयं की सेहत को सही रखने की चुनौती होती थी, वहीं घर से कोसों दूर बिकवाली का इंतजार करते किसानों की राह में अनेक मुश्किलें आती थीं। ऐसे में नया कानून किसानों को खेत, खलिहान एवं गांव के अंदर ही बाजार उपलब्ध कराता है। अब उसे व्यापारी के पास नहीं जाना है, बल्कि व्यापारी फसल खरीदी हेतु उसकी चौखट तक पहुंचेगा। ऐसे में नया कृषि सुधार कानून किसानों को आसान एवं सुविधायुक्त व्यवस्था उपलब्ध कराता है। किसानों को आशंकाओं से पैदा होने वाली नकारात्मकता से बचना चाहिए।

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