आवाज ए हिमाचल
23 जनवरी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में भाजपा ने पूर्वोत्तर राज्यों में भी शानदार प्रदर्शन किया है। पार्टी इसे फिर से दोहराना चाहती है और असम में इस साल चुनाव होने हैं। यही कारण है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शनिवार को यहां पहुंचे। उन्होंने शिवसागर में स्थित जेरेंगा पोथार में रैली की। जेरेंगा पोथार का एक अलग ही ऐतिहासिक महत्व है। इसी मैदान में 17वीं शताब्दी की राजकुमारी जॉयमती ने अपने पति के लिए अपने जीवन का बलिदान दिया था। शिवसागर को पहले रंगपुर नाम से जाना जाता था। इसका संबंध शक्तिशाली अहोम वंश से है, जिसने छह शताब्दियों (1228-1826) तक असम पर शासन किया था। यह ऊपरी असम का हिस्सा है। शिवसागर शहर में जेरेंगा पठार एक खुला मैदान है।
यह पठार चारों तरफ से गांवों से घिरा हुआ है। दुर्लभ अवसरों पर इसका इस्तेमाल महत्वपूर्ण घटनाओं के लिए किया जाता है। 17वीं शताब्दी की अहोम राजकुमारी जॉयमती वीरता के कारण लोकप्रिय है। अहोम राजाओं के साहस और बहादुरी के बारे में काफी कुछ लिखा और पढ़ा गया,लेकिन राजकुमारी जॉयमती की कहानी को 19वीं सदी के आधा बीत जाने तक नजरअंदाज कर दिया गया। सन् 1671 से 1681 तक अहोम राजाओं का शासन काफी उथल-पुथल के दौर से गुजरा। अकुशल प्रधानसेवकों ने राजाओं की परेशानी बढ़ा दी थी। इसी दौरान लोरा राजा के नाम से जाना जाने वाले सुलिखपा और उनके प्रधानमंत्री लालुकास्ला बोरफूकन ने राज हासिल करने के लिए अपने कई उत्तराधिकारियों को मरवा दिया था। राजकुमारी जॉयमती के पति राजकुमार गोडापानी उनके अगले शिकार थे। वह उनसे बचकर नागा हिल्स भाग गए। इसके बाद लोरा राजा ने उनकी पत्नी जॉयमती को पकड़ लिया।
उन्हें इस उम्मीद से पकड़ा गया कि डर के मारे वह अपने पति के बारे में बता देंगी। जॉयमती को इसके लिए कई दिनों तक यातनाएं दी गईं, लेकिन उन्होंने साहस नहीं छोड़ा और उनके आगे नहीं झुकीं। उन्होंने राजकुमार के बारे में कोई जानकारी नहीं दी। उन्हें इसी मैदान में खूब यातनाएं दी गईं। कहा जाता है उन्हें एक कांटेदार पेड़ से बांध दिया गया था। इसके चलते उन्होंने दम तोड़ दिया। बाद में उनके पति राजा बने।इतिहासकारों के अनुसार, जेरेंगा पोथार प्रकरण आधिकारिक तौर पर किसी भी अहोम काल के इतिहास में दर्ज नहीं है। ये ज्यादातर पुरुषों द्वारा, या राजा के आदेश पर लिखे गए थे इसके चलते असम में या फिर भारत के दूसरे हिस्सों में उनकी वीरता के बारे में पढ़ाया नहीं जाता। राजकुमारी जॉयमती का व्यक्तित्व एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक कहानियों के माध्यम से पहुंचा है। असम में आज भी उनका काफी सम्मान होता है। उन्हें सती का दर्जा मिला है। साल 1935 में उनके ऊपर एक फिल्म भी बनी। असम के सांस्कृतिक आइकन ज्योति प्रसाद अग्रवाल ने यह फिल्म बनाई थी।
जेरेंगा पोथार का महत्वः
जेरेंगा पोथार को शुरुआत में जेरेंगा हबी या जेरेंगा जंगल के नाम से जाना जाता था। जेरेंगा पोथर अपने आप में एक संरक्षित पुरातात्विक स्थल नहीं है, लेकिन इसके आसपास के क्षेत्र में कई संरक्षित स्थल हैं। इसके पूर्व में न पुखुरी टैंक है। इसके पश्चिम में पोहु गढ़ है, जो अहोम युग के दौरान बनाया गया एक प्राकृतिक चिड़ियाघर है। पास ही में बड़ा जोयसागर तालाब है, जिसे अहोम राजा स्वर्गदेव रूद्र सिंहा ने 1697 में बनवाया था। इसके अलावा यहां विष्णु डोल मंदिर भी है।