परवाणू की एसएनएस फाउंडेशन ने अब तक स्लम क्षेत्रों के 250 बच्चों को पहुंचाया स्कूल

Spread the love

आवाज़ ए हिमाचल

यशपाल ठाकुर, परवाणू

23 फ़रवरी।औद्योगिक नगरी परवाणू में कार्यरत एनजीओ संत निश्चल सिंह (एसएनएस) फाउंडेशन घर घर जाकर शिक्षा की अलख जगा रही है।नॉन रेजिडेंशियल स्पेशल ट्रेनिंग (एनआरएसटी) प्रोग्राम के अंतर्गत फाउंडेशन उन बच्चों को स्कूल पहुंचाने का कार्य कर रही है,जो बच्चे किसी कारणवश स्कूल नहीं जा पा रहे है। फाउंडेशन के कर्मी पहले सर्वे करके उन बच्चों का पता करते है,जो बच्चे स्कूल तक नहीं पहुंच पा रहे है। इसके बाद उन बच्चों के पेरेंट्स को मोटिवेट करके बच्चों को संस्था द्वारा शिक्षा के प्रति जागरूक किया जाता है। एसएनएस फाउंडेशन में बच्चों की एजुकेशनल ग्रूमिंग की जाती है व उनमे लर्निंग एबिलिटी विकसित की जाती है।बच्चा जब पढ़ने लिखने के काबिल हो जाता है,तो निकटवर्ती सरकारी प्राइमरी स्कूल में उसका दाखिला करवा दिया जाता है। दाखिले से पूर्व स्कूल द्वारा बच्चे का बाकायदा टेस्ट लिया जाता है।टेस्ट क्लियर करने पर ही बच्चे का स्कूल में दाखिला लिया जाता है।एसएनएस फाउंडेशन इस प्रोग्राम के माध्यम से अब तक लगभग 250 बच्चो को स्कूल भेज चुकी है।
गौरतलब है की आनंद ग्रुप की सीआरएस स्कीम के अंतर्गत कार्यरत एसएनएस फाउंडेशन पिछले लगभग दो दशको से परवाणू व आसपास के क्षेत्र में समाज सेवा के कार्य कर रही है। फाउंडेशन द्वारा पिछले लगभग 7 वर्षो से डाइट सोलन के सहयोग से एनआरएसटी प्रोग्राम चलाया जा रहा है। फाउंडेशन के कर्मी परवाणू के विभिन्न स्लम एरिया में जाकर 6 वर्ष से ऊपर आयुवर्ग के उन बच्चो की लिस्ट बनाते है,जोकि किसी कारणवश स्कूल नहीं जा पा रहे है। इसके बाद उनके परिजनों से मिलकर उन्हें बच्चो को फाउंडेशन में भेजने के प्रति मोटीवेट किया जाता है।कई बार तो पेरेंट्स के पास कई कई बार विजिट करके उन्हें समझाना पड़ता है। बच्चा जब फाउंडेशन आने लगता है तो यहाँ टीचर्स द्वारा उनकी एजुकेशनल ग्रूमिंग की जाती है। बच्चो को उनकी दक्षता के अनुसार 3 महीने से लेकर 18 महीनो तक यहाँ पढाया लिखाया जाता है। इसके बाद टेस्ट क्लियर करने के बाद उसे साथ लगते प्राइमरी स्कूल में दाखिल करवा दिया जाता है। इस प्रोग्राम के जरिए फाउंडेशन अभी तक लगभग 250 बच्चो को स्कूल भिजवा चुकी है।
एसएनएस फाउंडेशन की प्रोजेक्ट हेड अंजना शर्मा का कहना है कि परवाणू के स्लम एरिया में अधिकतर माइग्रेट लेबर रहती है।यह लोग 6 महीने यहाँ तो 6 महीने अपने मूल स्थान पर चले जाते है, ऐसे में अपने बच्चो को स्कूल नहीं भेजते है। कई बार देखने में आया है की अपने छोटे भाई बहनों की देखभाल करने के चलते भी बच्चे स्कूल नहीं जा पाते है। ऐसे में फाउंडेशन ने बालवाडी भी खोल रखी है, ताकि उनके छोटे भाई बहन बालवाडी में रह सके व बड़े बच्चे शिक्षा ग्रहण कर सके। इस कार्य में हमारी टीम को काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, लेकिन फिर भी संस्था के प्रतिनिधि कड़ी मेहनत करके बच्चो व उनके अभिभावकों को शिक्षा के प्रति जागरूक करने में सफल रहे है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *