भूस्खलन से 120 साल पुराना कालका-शिमला रेल ट्रैक क्षतिग्रस्त, हवा में लटकी पटरी

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आवाज़ ए हिमाचल 

शिमला। हिमाचल प्रदेश की राजधानी में समरहिल के पास भूस्खलन के चलते विश्व धरोहर कालका-शिमला रेल मार्ग बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया है। रेल पटरी हवा में लटक गई है। 120 साल पुराना ऐतिहासिक कालका-शिमला रेलवे मार्ग पर ट्रेनों की आवाजाही ठप हो गई हैं। यह पहली बार है जब कालका-शिमला ट्रैक को इतना बड़ा नुकसान हुआ है। 1898 और 1903 के बीच यह रेल लाइन तैयार की गई। 9 नवंबर, 1903 को कालका-शिमला रेलमार्ग की शुरुआत हुई थी। 1896 में इस रेल मार्ग को बनाने का कार्य दिल्ली-अंबाला कंपनी को सौंपा गया था। रेलमार्ग कालका स्टेशन 656 (मीटर) से शिमला (2,076) मीटर तक जाता है। 96 किमी लंबे रेलमार्ग पर 18 स्टेशन है। कालका-शिमला रेलमार्ग को केएसआर के नाम से भी जाना जाता है। 1921 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भी इस मार्ग से यात्रा की थी।

 कालका-शिमला रेललाइन पर 103 सुरंगें सफर को रोमांचक बनाती हैं। बड़ोग रेलवे स्टेशन पर 33 नंबर बड़ोग सुरंग सबसे लंबी है। इसकी लंबाई 1143.61 मीटर है। सुरंग क्रॉस करने में टॉय ट्रेन ढाई मिनट का समय लेती है। रेलमार्ग पर 869 छोटे-बड़े पुल हैं। पूरे रेलमार्ग पर 919 घुमाव आते हैं। तीखे मोड़ों पर ट्रेन 48 डिग्री के कोण पर घूमती है। कालका-शिमला रेलमार्ग नेरोगेज लाइन है। इसमें पटरी की चौड़ाई दो फीट छह इंच है।

जुलाई 2008 में मिला विश्व धरोहर का दर्जा

कालका-शिमला रेललाइन के ऐतिहासिक महत्व को देखते हुए यूनेस्को ने जुलाई 2008 में इसे वर्ल्ड हेरिटेज में शामिल किया था। कनोह रेलवे स्टेशन पर ऐतिहासिक आर्च गैलरी पुल 1898 में बना था। शिमला जाते यह पुल 64.76 किमी पर मौजूद है। आर्च शैली में निर्मित चार मंजिला पुल में 34 मेहराबें हैं।

बाबा भलकू के सहयोग से पूरी हुई थी सुरंग

कालका से 41 किमी दूर बड़ोग रेलवे स्टेशन के पास बड़ोग सुरंग है, जिसे सुरंग नंबर 33 भी कहते हैं। 1143.61 मीटर लंबी सीधी सुरंग है। इसे बनाते हुए जब दोनों सिरे नहीं मिले थे तो ब्रिटिश इंजीनियर कर्नल बड़ोग ने एक रुपया जुर्माना लगने के कारण आत्महत्या कर ली थी। बाद में बाबा भलकू के सहयोग से यह सुरंग पूरी हुई थी।

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