आवाज़ ए हिमाचल
चंद्रताल। जल प्रलय ऐसा की रूह कांप उठे…हिमाचल में आई त्रासदी देख देश ही नहीं, दुनिया भी हिल गई। चुटकियों में डूबते आशियाने…खिलौनों की तरह बहती जिंदगी और ताश के पत्तों की तरह तहस-नहस होती बड़ी-बड़ी इमारतें…जिसने भी यह मंजर देखा वह कांप उठा और अंबर की तरफ देख सिर्फ यही कहा… अब बख्श दो…और सहन नहीं होता। मंडी-कुल्लू और किन्नौर में जहां जल प्रलय ने आतंक मचा दिया, वहीं लाहुल-स्पीति में बर्फीली आफत ने सैकड़ों जिंदगियों को सिकोड़ कर रख दिया। इस भयंकर त्रासदी के बीच जो सबसे पहला काम सैलानियों को सही सलामत लाना था और इससे भी मुश्किल था चंद्रताल में में फंसी उन 300 जिंदगियों का, जो पांच दिन से हाड़ कंपाती ठंड में ठिठुर रही थीं…बस अब शुरू होना था मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू का इम्तिहान, जिसमें वह फस्र्ट डिवीजन में पास हो गए। होते भी क्यों न, जमीन से जुड़े सुक्खू आम जनता का दर्द बखूबी जो समझते हैं। फिर क्या था हिमाचल के सीएम निकल पड़े बिलखते लोगों के जख्मों पर मरहम लगाने। सुक्खू साहब जहां मंडी-कुल्लू के हालातों से रू-ब-रू हुए, वहीं खुद व्यवस्था सामान्य करने की कमान संभाली। सबसे कठिन काम था चंद्रताल में फंसे पर्यटकों का रेस्क्यू करना, क्योंकि चार-पांच फुट जमी बर्फ पर हिमाचल आए मेहमानों को सही सलामत लाना बेहद मुश्किल था।
मुश्किल इसलिए कि वायुसेना ने भी चंद्रताल जाने से मना कर दिया था, ऐसे में मुख्यमंत्री ने पहले चंद्रताल का एरियल सर्वे किया और फिर रेस्क्यू ऑपरेशन में लगा दिए अपने बजीर, जिसमें राजस्व मंत्री जगत सिंह नेगी और सीपीएस संजय अवस्थी ने इस अभियान की कमान संभाली। दोनों नेता रेस्क्यू टीम को लेकर बर्फ को चीरते हुए फरिश्ते की तरह चंद्रताल में फंसे 300 लोगों के पास पहुंचे और सही सलामत ले आए। अभी काम खत्म कहां हुआ था। सांगला का मंजर भी सामने था। त्रासदी के बीच घिरे लोगों के लिए फरिश्ता बन मुख्यमंत्री सुक्खू सांगला की सांसों में भी जान भर आए। हिमाचल के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि खुद मुख्यमंत्री त्रासदी के तुरंत बाद वहां पहुंचे हों और महज दो दिन में लाखों जिंदगियों को बचा लिया हो। जिस स्लोगन के साथ सुक्खू सत्ता में आए थे, वह निश्चय ही चरितार्थ होता दिख रहा है, क्योंकि व्यवस्था परिवर्तन सिर्फ सियासत तक सीमित नहीं। असल मुश्किल हालातों में हर चीज को व्यवस्थित करना ही व्यवस्था परिवर्तन है।