आवाज ए हिमाचल
अभिषेक मिश्रा, बिलासपुर।
प्रदेश में आम चुनावों की आहट शुरू हो चुकी है। वर्ष 2024 में होने वाले चुनावों के मद्देनजर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष व केंद्रीय मंत्री ने अपनी राजनैतिक रोटियां सेकनी शुरू कर दी है, लेकिन देश की जनगणना के बारे में भाजपा नेताओं के इन नेताओं चुप्पी साध रखी है, यह कहना है कांग्रेस हमीरपुर संसदीय क्षेत्र के वरिष्ठ प्रवक्ता संदीप सांख्यान का। उन्होंने आरोप लगाया है कि वर्ष 2021 में देश की जनगणना होनी थी केंद्र की सरकार ने कोविड-19 का बहाना लेकर देश जनगणना की जानकारी पर टालमटोल बयानबाजी की है। जबकि जनगणना के आधार पर ही देश में लोकसभा, राज्यसभा और विधानसभाओं सीटें तय की जानी है और पुनर्सीमांकन भी होना है। लेकिन देश की जनसंख्या के आंकड़ों को छुपाना देश द्रोह से कम नहीं आँका जा सकता है। संदीप सांख्यान ने कहा है कि देश में जनगणना के आंकडों का खास महत्व होता है। जनगणना से प्राप्त आबादी, लोगों की आर्थिक, सामाजिक, शैक्षणिक और बेरोजगारी की स्थिति आदि से संबंधित प्राप्त आंकड़ों के आधार पर वहां की सरकारें अपने लोगों के लिए कल्याणकारी नीतियां और विकास के कार्यक्रम बनाती हैं और उन पर अमल करती हैं। लेकिन केंद्र की सरकार उनके मंत्री और उनके राष्ट्रीय अध्यक्ष ऐसे अहम मुद्दों पर चुप्पी साधे हुए हैं। उन्होंने कहा है कि देश में जब राजनैतिक, सामाजिक, धार्मिक आयोजन कोरोना काल में हुए तो देश की जनसंख्या की गणना कोविड-19 के चलते न हो सकी बेतुकी और तर्कहीन बात लगती है। जबकि असलियत यह है कि केंद्र की सरकार और भाजपा के नेता जनसंख्या के आकड़ो को छुपा कर देश मे बढ़ती बेरोजगारी और जनकल्याण की योजनाओं को छुपाना चाहती है जो कि देश की सेहत और आमजनता की सेहत के लिए ठीक नहीं है। केंद्र की सरकार जनगणना के आंकड़ों को छुपा कर देश की आर्थिक और सामाजिक स्थितियों पर पर्दा डालना चाहती है। देश को आजाद हुए 76 वर्ष पूरे हो चुके हैं। मौजूदा सरकार का दावा है कि कमजोर तबकों का जीवन स्तर ऊंचा उठाने और अन्य लोक कल्याण संबंधी जितने काम पिछले 75 साल में नहीं हुए, उससे ज्यादा काम उन्होंने 8-9 साल में ही कर दिए हैं। लेकिन जनगणना शुरू कराने को लेकर उसके टालू रवैये से अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह सरकार विकास, सामाजिक न्याय और समाज कल्याण को लेकर कितनी गंभीर है।
वैसे भी जब कोई सरकार अपनी पूर्ववर्ती सरकारों की शुरू की गई योजनाओं के नाम बदलने, उसके द्वारा शुरू की गई विकास परियोजनाओं को अपनी बता कर उनका उद्घाटन करने तथा शहरों, सड़कों और इमारतों का नाम बदलने को ही विकास समझती हो तो उसके लिए जनगणना के आंकड़े कितना मायने रखता है वह आने वाले लोकसभा चुनाव ही बता सकेंगे, जिसका खामियाजा केंद्र सरकार को भुगतना पड़ेगा और जनसंख्या के आंकड़ों को सार्वजनिक न करना देश की जनता के साथ विश्वासघात है।