आवाज ए हिमाचल
7 जनवरी। अमेरिकी लेखक डैनियल एच. पिंक के मुताबिक, “रचनात्मक लोगों को तीन चीजें ज्यादा प्रेरित करती हैं – स्वायत्तता, निपुणता और उद्देश्य।” यहां यह ध्यान देने वाली बात है कि अगर कोई व्यक्ति या संस्था निपुण है और उसका उद्देश्य स्पष्ट है, तो उसे आगे बढ़ने के लिए स्वायत्तता यानी मर्जी से काम करने की आजादी दे देनी चाहिए। इससे उसका और उससे जुड़े हितधारकों का तेजी से विकास संभव हो पाएगा। उच्च शिक्षा में यूनिवर्सिटी या शैक्षणिक संस्थाओं को दी जाने वाली वर्गीकृत स्वायत्तता (ग्रेडेड ऑटोनॉमी) इसी सोच पर आधारित है।
ऑटोनॉमी का ग्रेड मिलने के बाद शैक्षणिक संस्थान बिना किसी दखल के छात्रों के सही विकास के लिए स्वतंत्र रूप से निर्णय ले सकते हैं। वैसे ये मान्यता उन्हीं संस्थाओं को मिलता है, जिन्होंने विभिन्न सुविधाओं के साथ छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दी है। मतलब जिसकी परफॉर्मेंस अच्छी उसको उस हिसाब से ऑटोनॉमी यानी स्वायत्तता दी जाती है, ताकि वह खुद को और ज्यादा बेहतर बना सके। इसमें संस्थान को यह स्वतंत्रता होती है कि वह खुद ही पाठ्यक्रम में बदलाव करें, जिससे बदलते समय के साथ छात्रों का सही दिशा में विकास संभव हो सके।
इसके अलावा, संस्थान बच्चों को अच्छी शिक्षा देने के लिए फॉरेन फैकल्टी को भी हायर कर सकता है। यहां तक कि विदेशी छात्र भी संस्थानों में दाखिला ले सकते हैं। साथ ही रिसर्च पार्क और इनक्यूबेशन सेंटर खोलने की भी स्वायत्तता दी जाती है। इसमें एक और फायदा यह है कि संस्थान विश्व की टॉप यूनिवर्सिटी के साथ कोलेबोरेशन भी कर सकते हैं। इस तरह ग्रेडेड ऑटोनॉमी वाले संस्थानों में छात्रों को बहुत ही शानदार एक्सपोजर मिलता है। इससे छात्र तेजी से आधुनिक शिक्षा की ओर अग्रसर होंगे।