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सोलन। भारतीय प्राणी सर्वेक्षण विभाग के वैज्ञानिकों ने पानी के नीचे रहने वाले तीन ऐसे जंतुओं की पहचान की है, जिनकी उपस्थिति से स्वत: ही यह पता चल जाता है कि इस नदी व प्राकृतिक जल स्रोत का पानी मनुष्य के लिए पीने योग्य है और बैक्टीरिया मुक्त है। वैज्ञानिकों ने पूरे भारत की नदियों, झरनों व अन्य जल स्रोतों के कई वर्षों के अध्ययन व गहन शोध के पश्चात इन जंतुओं का पता लगाया है। प्रमुख पहलू यह है कि इन तीन जंतुओं में से दो हिमाचल प्रदेश के बैजनाथ (कांगड़ा) में ब्यास की सहायक नदी व सोलन के समीप गिरि नदी में पाए गए हैं। इनके नाम क्रमश: ‘तेनूईबाइटस कांगी’ व ‘करोर्पपस गिरीगंगाइनिस’ हैं। तेनूईबाइटस जंतु ब्यास की एक सहायक नदी में बैजनाथ के जल स्त्रोत व करोर्पपस नाम का जंतु गिरि गंगा नदी में मिला है। तेनूईबाइटस कांगी जंतु का नामकरण जापान के मशहूर वैज्ञानिक डा. कांग के नाम पर किया गया है।
डा. कांग ने ही सबसे पहले तेनूईबाइटस जंतु के लारवा के ऊपर शोध करके यह बताया था कि जहां-जहां पानी में यह जंतु पाया जाता है, वहां का जल पूर्ण रूप से शुद्ध होता है तथा मुनष्य के सेवन के लिए बिना किसी प्रयोगशाला में जांच के बगैर ही उपयुक्त पाया जाता है। यानी जहां भी पानी के अंदर यह लारवा (जंतु) होगा, वहां का पानी बिनी किसी जांच के पीने लायक होगा। भारत में भी तीन जगहों पर वैज्ञानिकों ने इस जंतु की खोज की है। इनमें से दो हिमाचल की नदियों में मिले हैं। वैज्ञानिकों ने इस लारवे को ‘मेफलाई’ की श्रेणी में रखा है। यह जंतु बहते पानी व प्राकृतिक जलस्रोत दोनों में हो सकता है तथा पत्थर के नीचे ही अकसर पाया जाता है। भारतीय प्राणी सर्वेक्षण विभाग कोलकता के मार्गदर्शन में लंबे अरसे तक वैज्ञानिक टी कुबेंद्रन, केए सुब्रह्मनयम, विक्रमजीत सिन्हा व एस वासंथ ने इस पर व्यापक शोध किया। शोधकर्ता टीम में शामिल एक वैज्ञानिक टी कुबेंद्रन ने इस मेफलाई जंतु के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि यह जंतु जिस भी जल स्रोत में होगा, वहां जल परीक्षण करवाए बगैर ही पानी पीया जा सकता है। जहां पानी में बैक्टीरिया होगा या प्रदूषण होगा, वहां पर यह मेफलाई नहीं रह सकती। हिमाचल में सिर्फ बैजनाथ के समीप ब्यास की सहायक नदी व सोलन में गिरि गंगा में ही इनके मिलने की पुष्टि हुई है।