आवाज़ ए हिमाचल
शिमला। हिमाचल में बंदरों के बढ़ते खतरे के बाद उन्हें हिंसक जानवर (वर्मिन) की श्रेणी लाने पर बहस भले ही छिड़ गई हो, लेकिन अब किसी भी जानवर को वर्मिन श्रेणी में डालना संभव नहीं हो पाएगा। वाइल्ड लाइफ एक्ट में बदलाव हो चुका है। पिछले साल वाइल्ड लाइफ एक्ट को राज्यसभा से मंजूरी मिल गई थी। इस मंजूरी के साथ ही वाइल्ड लाइफ एक्ट में शामिल शेड्यूल-5 के प्रावधान को हटा दिया गया है। दरअसल शेड्यूल-5 में ही फसलों या मानव जीवन को खतरे में डालने वाले जानवरों को हिंसक घोषित करने का प्रावधान था। अब शेड्यूल को हटाने के बाद किसी भी जानवर को वर्मिन नहीं बनाया जा सकता है। गौरतलब है कि अधिनियम में बदलाव से पहले तक वर्मिन की श्रेणी में आने वाले जानवरों को कानूनी तौर पर मारने की इजाजत मिलती रही है। हिमाचल में बड़े पैमाने पर फसलों और आम लोगों को नुकसान पहुंचाने में बंदर सबसे आगे रहे हैं। इस क्रम को देखते हुए पूर्व में बंदरों को वर्मिन श्रेणी में लाने को लेकर प्रयास किए गए। हाल ही में शिमला में तीसरी मंजिल से गिरने के बाद यह युवती की मौत बंदरों की वजह से हुई है।
इससे पहले 2014 में भी एक महिला की मौत बंदरों की वजह से हो चुकी है, जबकि बीते साल नवंबर महीने में बंदर 75 हजार रुपए से भरे बैग को लेकर रफूचक्कर हो गए थे। प्रदेश भर में बंदरों की उजाड़ से फसलें बर्बाद होने की शिकायतें भी अलग-अलग जिलों से सामने आती रही हैं। बंदरों के बढ़ते खौफ को देखते हुए प्रदेश उच्च न्यायालय ने भी संज्ञान लिया है और तमाम विभागों से बंदरों को वर्मिन घोषित करने पर स्थिति साफ करने के आदेश जारी किए हैं, लेकिन नए एक्ट के लागू होने के बाद अब बंदरों को वर्मिन घोषित नहीं किया जा सकता है, बल्कि उनकी आबादी को कम करने के लिए दूसरे रास्ते अपनाने होंगे। वन विभाग ने भी साफ कर दिया है कि बंदरों की बढ़ती तादाद पर नियंत्रण करने के लिए नसबंदी अभियान पर जोर दिया जाएगा। इसके अलावा लोगों को जागरूक करने के लिए भी वन विभाग आगामी दिनों में बंदरों के प्रभाव वाले इलाकों में विशेष अभियान चलाएगा। ताकि बंदरों के झुंड शहर में दाखिल न हो सकें।