आवाज़ ए हिमाचल
प्रयागराज। पुलिस कस्टडी के दौरान अतीक अहमद और अशरफ की हत्या ने एक बार फिर यूपी पुलिस और कानून व्यवस्था पर सवाल खड़ा कर दिया है। इस राज्य में पहले भी पुलिस कस्टडी में हत्या को लेकर सवाल उठ चुके हैं और कई बार विपक्ष ने योगी सरकार को घेरा भी है। यूपी में सिर्फ अतीक और अशरफ नहीं, पुलिस कस्टडी में हत्याओं एक पूरा इतिहास है। सुप्रीम कोर्ट ने साल 1996 में एक केस की सुनवाई के दौरान एक आदेश में कहा था कि किसी भी इंसान की पुलिस कस्टडी में हत्या जघन्य अपराध है। इसके बाद भी आंकड़े पर नजर डालें तो साल 2017 से लेकर साल 2022 तक उत्तर प्रदेश में पुलिस कस्टडी में 41 लोगों की हत्या हो चुकी है। लोकसभा में गृह मंत्रालय की ओर से दी गई जानकारी के अनुसार साल 2017 में दस लोगों की मौत हुई, साल 2018 में 12 लोगों की पुलिस कस्टडी के दौरान मौत हुई, साल 2019 में तीन, 2020 में आठ और 2021 में आठ लोगों की पुलिस कस्टडी में मौत हुई है।
20 साल में 1,888 लोगों की पुलिस हिरासत में मौत
गृह मंत्रालय के तहत आने वाले नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में पिछले 20 सालों में 1,888 लोगों की पुलिस हिरासत में मौत हुई है। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, इन मामलों में पुलिसकर्मियों के खिलाफ 893 केस दर्ज किए गए और 358 लोगों के खिलाफ चार्जशीट दायर हुई। हालांकि सिर्फ 26 पुलिसकर्मियों को सजा दी गई।
यह है कानून
सुप्रीम कोर्ट के वकील धु्रव गुप्ता ने एबीपी को बताया कि अगर किसी विचाराधीन कैदी की पुलिस हिरासत में हत्या कर दी जाती है तो संबंधित अधिकारियों पर आईपीसी की धारा 302, 304, 304ए और 306 के तहत मुकदमा चलाया जा सकता है। इसके अलावा, पुलिस अधिनियम, 1861 की धारा 7 और 29 के अनुसार लापरवाह अधिकारियों को बर्खास्तगी या निलंबन की सजा दी जा सकती है। धारा 302 में हत्या का प्रावधान है, जबकि 304 में गैर इरादतन हत्या का प्रावधान है। 304ए में लापरवाही से मौत का प्रावधान है और 306 आत्महत्या के लिए उकसाने का प्रावधान है।