आवाज़ ए हिमाचल
शिमला। हिमाचल प्रदेश के लाखों सरकारी कर्मचारियों को सुक्खू सरकार की 13 जनवरी को प्रस्तावित पहली कैबिनेट बैठक में पुरानी पेंशन का तोहफा मिलेगा। मुख्यमंत्री सुखविंद्र सिंह सुक्खू ने गुरुवार को सचिवालय में अधिकारियों व कर्मचारियों को संबोधित करते हुए इसकी जानकारी दी। कहा कि अर्की में उन्होंने पहली बार कहा कि था कर्मचारियों को पुरानी पेंशन मिलनी चाहिए। इसका मकसद कर्मचारियों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करना था। पूर्व सरकार ने 75 हजार करोड़ का कर्ज ले लिया, लेकिन कर्मचारियों के पांच हजार करोड़ रुपये के एरियर तक नहीं दिए। इससे साफ है कि कहीं न कहीं अव्यवस्था है। कर्मचारियों का स्वाभिमान लौटाने, सामाजिक सुरक्षा देने के लिए कल कैबिनेट में पुरानी पेंशन योजना पर फैसला लिया जाएगा। सीएम ने आगे कहा कि कल से आपकी पुरानी पेंशन के पैसों का भी इंतजाम कर दिया जाएगा। इसे किस तरीके से दिया जाएगा, इसका भी कर्मचारी प्रतिनिधियों के बैठकर निर्णय लिया जाएगा। सीएम ने कहा कि पूर्व सरकार ने बिना बजट प्रावधान 900 संस्थान खोल दिए। वैट पड़ोसी राज्यों में कम है। इसलिए प्रदेश सरकार ने भी डीजल पर वैट तीन रुपये बढ़ाया है। हम ईमानदार व जानदार प्रशासन बनाना चाहते हैं।
100 करोड़ रुपये का मुख्यमंत्री सुखाश्रय कोष बनाएंगे
मुख्यमंत्री ने कहा कि सीएम बनने के बाद सचिवालय नहीं आए, बल्कि उन 6,000 बच्चों के पास गए जिनके माता-पिता नहीं हैं। ताकि उन्हें यह महसूस न हो कि उनका कोई नहीं है। अनाथ बच्चों और असहायों के लिए 100 करोड़ रुपये का मुख्यमंत्री सुखाश्रय कोष बनाएंगे। विधायकों से भी एक-एक लाख रुपये इस कोष में देने के लिए कहा गया है। दो साल में मुख्यमंत्री के ऑफिस की तरह अनाथ बच्चों के कमरे होंगे। सरकार ही इन बच्चों की माता-पिता हैं।
गाय का दूध 80 और भैंस 100 रुपये प्रति किलो खरीदेंगे
समाज में पिछड़ी, विधवा महिलाओं समेत अन्य वंचित वर्गों के लिए बजट में प्रावधान किया जाएगा। कहा कि गांवों की आर्थिकी को मजबूत करने के लिए सरकार काम करेगी। ग्रामीण अर्थव्यवस्था को को सुदृढ़ करने के लिए सरकार गाय का दूध 80 और भैंस 100 रुपये प्रति किलो के हिसाब से खरीदेगी। किसानों को प्राकृतिक खेती के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा। हर पशुपालक से 10 किलो तक दूध खरीदा जाएगा।
सत्ता के लिए नहीं, बल्कि व्यवस्था परिवर्तन के लिए आए
सुक्खू ने बचपन की यादों को ताजा करते हुए कहा कि स्कूल के दिनों में वह शिमला में लोक निर्माण विभाग में सुपरवाइजर बने और तक सवा छह रुपये वेतन के रूप में मिलते थे। इसके बाद एमसी में पेयजल शिकायत निवारण कक्ष में भी काम किया। संजौली कॉलेज में सीआर रहे, फिर युवा कांग्रेस के अध्यक्ष बने और एमसी शिमला के पार्षद भी रहे। 2017 में विधायक बने और 40 साल बाद मुख्यमंत्री बने हैं। कभी मंत्री नहीं बने। लेकिन मन में एक निश्चय किया था कि राजनीतिक जीवन को अपनाना है।आज दावे के साथ कह सकते हैं कि हम सत्ता के लिए नहीं, बल्कि व्यवस्था परिवर्तन के लिए आए हैं। इसमें आप सब का सहयोग चाहिए। तीन महीने बाद जब बजट आएगा तो आप पाएंगे कि ये परिवर्तन का दौर चल पड़ा है। इस परिवर्तन के दौर में समाज के वंचित वर्ग सरकार की प्राथमिकता में होंगे।