हाई कोर्ट ने भू-अधिग्रहण मामले में एनएचएआई को दिए आदेश; कहा, चार हफ्ते के भीतर देनी होगी मुआवजा राशि
आवाज़ ए हिमाचल
शिमला। प्रदेश हाई कोर्ट ने भू-अधिग्रहण के मामलों में महत्त्वपूर्ण व्यवस्था देते हुए कहा है कि भूमि अधिग्रहण के सरकार के नाम हुई भूमि दोबारा भू-मालिक को वापस नहीं की जा सकती। न्यायाधीश ज्योत्सना रिवाल दुआ ने स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा कि कानून में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है कि सरकार अधिगृहित भूमि वापस भू-मालिक के नाम कर दे। कोर्ट ने कहा कि अधिग्रहण के बाद जब भूमि सरकार के नाम हो जाती है, उस जमीन के इस्तेमाल को लेकर भू-मालिक का कोई लेना-देना नहीं रहता। भू-मालिक केवल उचित मुआवजे का हक रखता है।
सरकार अधिग्रहण करने के पश्चात यह कहते हुए भूमि के मुआवजे से नहीं बच सकती कि अधिगृहित भूमि उसे नहीं चाहिए। सरकार के पास ऐसी कोई शक्ति नहीं है कि वह अधिगृहत भूमि संबंधित भू-मालिक को वापस करे और न ही भू-मालिक किसी भी आधार पर अधिगृहित भूमि वापस मांगने का हकदार है। जब तक अधिग्रहण प्रक्रिया को ही चुनौती न दी हो, तब तक भू-मालिक अपनी भूमि वापस नही मांग सकता।
मामले के अनुसार प्रार्थियों की जमीन का अधिग्रहण पठानकोट-मंडी राष्ट्रीय राजमार्ग के निर्माण के लिए नेशनल हाई-वे अधिनियम 1956 के तहत किया गया था। नियमानुसार इसकी अधिसूचना 20 अक्तूबर, 2020 को की गई। 11 दिसंबर, 2020 को अधिग्रहण की घोषणा कर दी गई, इसलिए इसी दिन से अधिगृहित भूमि सरकार के नाम हो गई। इसका अवार्ड भी 15 मार्च, 2013 को पारित हो गया। प्रार्थियों का आरोप था कि अवार्ड पारित होने के बावजूद सरकार उन्हें मुआवजा राशि जारी नहीं कर रही है।
एनएचएआई का कहना था कि अधिगृहित भूमि वास्तविक सुरंग से ऊपर 60 मीटर दूर है, इसलिए प्रार्थियों की भूमि सुरंग निर्माण के लिए नहीं चाहिए, न ही यह भूमि हाई-वे प्रोजेक्ट के निर्माण में इस्तेमाल की जानी है। इन परिस्थितियों में एनएचएआई ने उक्त भूमि को वापस कर भू-मालिकों द्वारा पुन: इस्तेमाल के लिए छोडऩे की अनुमति मांगी। कोर्ट ने कानूनी स्थिति स्पष्ट करते हुए एनएचएआई की मांग को अस्वीकार करते हुए उन्हें आदेश दिए कि वह प्रार्थियों की जमीन की मुआवजा राशि चार सप्ताह के भीतर जारी करे।