अपने भीतर के काम, क्रोध, लोभ, मोह और ईष्या रूपी वायरस को त्यागने से होगी भगवान की प्राप्ति: आचार्य सुनील  

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आवाज़ ए हिमाचल 

अभिषेक मिश्रा, बिलासपुर। नगर के वार्ड नंबर-5 में स्थित शिव मंदिर में चल रही श्रीमद भागवत कथा के दूसरे दिन प्रवचनों की अमृतवर्षा करते हुए कथा व्यास आचार्य सुनील वशिष्ठ महाराज ने अपने मुखारविंद से प्रवचनों की ऐसी अमृतवर्षा की कि उपस्थित श्रद्धालु भावविभोर हो गए। आचार्य सुनील वशिष्ठ जी महाराज के प्रवचनों का आनंद लेने के लिए रविवार को मंदिर परिसर का हाॅल पूरी तरह से भरा था। अपनी ओजस्व वाणी से कथावाचक ने श्रद्धालुओं को कर्म की प्रधानता के बारे में विवेचन किया।

उन्होंने कहा कि कोई भी कार्य छोटा बड़ा या ऊंचा नीचा नहीं होता, प्रकृति में हर कार्य केवल कार्य है, यह जीव पर निर्भर करता है कि वह उसे दिए गए कार्य को किस प्रकार पूर्ण करता है। उन्होंने कहा कि जब कोई किसी कार्य को करता है तो वह उसका धर्म हो जाता है। कार्य के प्रकार भिन्न हो सकते हैं किंतु जब इसी कार्य को पूर्ण निष्ठा और ईमानदारी से किया जाता है तो यह कार्य धर्म न रहकर परमधर्म बन जाता है। आचार्य सुनील वशिष्ठ जी महाराज ने इस बात का भावार्थ समझाते हुए कहा कि लोगो को अपना काम ईमानदारी से करना चाहिए, यही काम फलीभूत होते हैं। उन्होंने कहा कि ईश्वर की प्राप्ति के लिए घर परिवार का त्याग या वैराग्य अपनाना जरूरी नहीं होता है। जीव को अपने भीतर के आवरण को बाहर लाकर उसका त्याग करना है, जिससे प्रभु की प्राप्ति सुलभ हो। उन्होंने कहा मनुष्य गृहस्थ में रहकर भी भगवान की प्राप्ति कर सकता है। बशर्ते उसे अपने भीतर के काम, क्रोध, लोभ, मोह और ईष्र्या रूपी वायरस को त्यागना होगा। इस दौरान उन्होंने कई रोचक प्रसंग सुनाए। वहीं आयोजन कानन शर्मा और नरेश शर्मा ने बताया कि शिव मंदिर में 14 अक्तूबर से लेकर 20 अक्तूबर तक श्रीमद भागवत कथा का आयोजन किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि 20 अक्तूबर तो 3 बजे से शाम से अटूट भंडारे का आयोजन भी किया जाएगा।

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