ऊच करक्यूमिन मात्रा वाली जैविक हल्दी उगाकर और मुल्य वर्धन से बदल सकते हैं खेती का ट्रेंड
आवाज़ ए हिमाचल
अभिषेक मिश्रा, बिलासपुर। भारतीय धर्म, संस्कृति और खानपान में हल्दी (टर्मेरिक) का विशेष महत्व है। इसे आम तौर पर मसाला माना जाता है, लेकिन असल में यह एक जड़ी-बूटी है जो शरीर के रोगों के निवारण के लिए उपयोग में आती है। हल्दी में शरीर की कोशिकाओं को रोगों से बचाने के और शरीर की सूजन और दर्द को कम करने के गुण होते हैं। हल्दी में एंटीसेप्टिक गुण भी पाए जाते हैं, यानी यह शरीर को रोगाणुओं से बचाती है और घाव या चोट को ठीक कर देती है। हल्दी को ‘भारतीय केसर’ भी माना गया है। भारतीय धर्मग्रंथों में तो हल्दी को गुणकारी माना गया है तो आयुर्वेद में हल्दी को शरीर के लिए ‘वरदान’ माना गया है।
हल्दी के औषधिये गुण उस में पाए जाने वाले बायो एक्टिव कंपोनेंट्स के कारण होते हैं।
इसमें मुख्य कॉम्पोनेन्ट करक्यूमिन होता है, जोकि हल्दी के विशिष्ट पीले रंग के लिए जिम्मेदार है। करक्यूमिन अपने आप में अपने एंटी-ट्यूमर, एंटीऑक्सिडेंट और एंटी-इंफ्लेमेटरी प्रभावों के लिए से जाना जाता है। आम तौर पर सामान्य हल्दी में करक्यूमिन की मात्रा 2-3 परसेंट तक होती है मार्किट में हाई करक्यूमिन वाली हल्दी की काफी डिमांड है इसीलिए उच्च करक्यूमिन प्रजाति की हल्दी को उगाना फायदेमंद साबित हो सकता है।
केहलूर बायो साइंसेज एंड रिसर्च सेंटर के कोफाउंडर डॉ. अमित कुमार और डॉ. विकेश ने बताया कि उन्होंने हाई करक्यूमिन मात्रा वाली हल्दी जैविक तरीके से अपने खेतों में लगाई है। इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ स्पाइस रिसर्च कोजहिकोडे, केरल के अनुसार हल्दी की यह किस्म कम अवधि की है और गंभीर सिंचाई समस्याओं वाले हल्दी उगाने वाले क्षेत्रों के लिए उपयुक्त पाई गई है। यह उच्च उपज देने वाली किस्म भी है क्योंकि इसमें स्थानीय हल्दी की किस्मों की तुलना में उपज में वृद्धि होती है। इसके साथ इसमें उच्च करक्यूमिन मात्रा लगभग 5 प्रतिशत तक पाई जाती है।
डॉ. अमित ने बताया कि वे कर्नल प्रकाश राणा (जिनको टर्मेरिक मैन ऑफ़ हिमाचल भी कहते हैं) से भी प्रेरित हुए हैं। किसान जैविक हल्दी उगाकर और प्रोसेसिंग के बाद मुल्ये वर्धन से खेती का ट्रेंड बदल सकते हैं और अधिक इनकम कमा सकते हैं। बाजार में वैसे तो प्रोसेस्ड हल्दी 150 रुपए से लेकर 300 रुपए प्रति किलो बिकती है, लेकिन जैविक हल्दी से अधिक कमाई की जा सकती है। हल्दी में स्पाइस के रूप में उपयोग होने के साथ साथ, फंक्शनल फ़ूड , हर्बल सप्लीमेंट्स और बायो कास्मेटिक के रूप में भी उपयोग होने की अपार सम्भावनाये हैं, जिनके ऊपर शोध कार्य चल रहा है।