आवाज़ ए हिमाचल
मंडी। पूर्व केंद्रीय दूरसंचार मंत्री पंडित सुखराम के बड़े पोते आश्रय शर्मा ने कांग्रेस पार्टी से किनारा कर लिया है। उन्होंने वीरवार को हिमाचल कांग्रेस कमेटी के महासचिव पद व पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है। वह 10 अक्टूबर को भाजपा में शामिल होंगे। विपाशा सदन में आयोजित होने वाली पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा की उपस्थिति में भाजपा की सदस्यता ग्रहण करेंगे। पंडित सुखराम का पूरा परिवार अब पूरी तरह भाजपा में हो गया है। आश्रय शर्मा के पिता सदर हलके के विधायक अनिल शर्मा भाजपा में हैं।
आश्रय शर्मा के कांग्रेस में होने की वजह से दोनों को दिक्कतोंं का सामना करना पड़ रहा था। दोनों काफी समय से एक ही राजनीतिक दल में रहकर राजनीति करने की बात कर रहे थे। वह बात आज पूरी हो गई है।
अनिल शर्मा ने 24 सितंबर को मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर की उपस्थिति में भाजपा में बने रहने की घोषणा की थी। पहले उनकी भी कांग्रेस में वापसी करने की अटकलें लगाई जा रही थी। पंडित सुखराम परिवार 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी छोड़ भाजपा में शामिल हुआ था। अनिल शर्मा ने भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा था। प्रदेश सरकार में ऊर्जा मंत्री का पद मिला था। 2019 के लोकसभा चुनाव में मंडी संसदीय क्षेत्र से टिकट को लेकर विवाद होने पर आश्रय शर्मा व पंडित सुखराम ने कांग्रेस में वापसी कर ली थी और अनिल शर्मा भाजपा में रह गए थे। इस विवाद के चलते उन्हें मंत्रीपद से हाथ धोना पड़ा था। आश्रय शर्मा ने वीरवार को मंडी में मीडिया के समक्ष अपना पक्ष रख कांग्रेस पार्टी छोड़ने की घोषणा की।
आश्रय ने मंडी में प्रेस वार्ता में कहा कि कांग्रेस में बिताया समय कभी नहीं भूलूंगा। हर पदाधिकारी और कार्यकर्ता का प्यार मिला। 2019 में चुनाव लड़ा। यह मेरे दादा पंडित सुखराम की इच्छा थी। वो कहते थे कि मेरी अंतिम इच्छा है कि मैं कांग्रेस पार्टी में रहते हुए ही प्राण त्यागूं। 2019 में कौल सिंह और प्रतिभा सिंह ने चुनाव से किनारा कर लिया। आलाकमान के कहने पर मेरे दादा ने अपनी इच्छा अनुसार वीरभद्र सिंह से सुलह कर मुझे चुनाव में उतारा। नामांकन के जब दो दिन रह गए तो संदेश आया की पूर्व सीएम वीरभद्र की कुछ शर्ते हैं जिन्हें भी पूरा किया। उसके बाद उन्होंने प्रचार भी किया। लेकिन वो जनसभाओं में यह कहते रहे कि सुखराम को कभी माफ नहीं करूंगा। मैं उन्हे दोष नहीं देता। उस वक्त पता नहीं उनकी क्या मजबूरी रही होगी। अगर विक्रमादित्य उस समय मेरी जगह लड़ते तो हमारा परिवार कभी ऐसा ना करता।