आवाज़ ए हिमाचल
कुल्लू। हिमाचल प्रदेश समेत देश भर के पर्वतारोहियों के लिए दुखद खबर है। हीरो ऑफ कंचनजंगा कर्नल प्रेम चंद डोगरा का निधन हो गया है। कुल्लू में उन्होंने मंगलवार रात को अंतिम सांस ली। वह बीते कुछ समय से बीमार चल रहे थे। उनके निधन के बाद अब देश में पर्वतारोहण के एक युग का अंत हो गया। पहाड़ों की ऊंचाई नापने, हिम्मत और उनके जुनून को देखते हुए भारतीय सेना ने कर्नल प्रेम को स्नो टाइगर के नाम से दिया था। वह देश के सर्वश्रेष्ठ पर्वतारोहियों में से एक हिमालयन आउटडोर एडवेंचर अकादमी (एचओएसी) के संस्थापक थे। उनके निधन से हिमाचल समेत लाहौल स्पीति जिले में शोक की लहर दौड़ गई है।
7 जून 1942 को कर्नल प्रेम चंद डोगरा का जन्म लाहौल स्पीति के लिंडूर गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम छेराम था। वह साल 1964 में भारतीय सैना में कमीशन हुए थे क्योंकि लाहौल में रोहतांग पास को पैदल पार कर मनाली पहुंचना पड़ता था। इसलिए बचपन से ही वह पर्वतारोहण में माहिर थे। देश की सबसे ऊंची चोटी कंचनजंगा को फतह करने वाले वह पहले भारतीय हैं। दुनिया मे कर्नल प्रेमचंद ने ही इस चोटी को सबसे पहले फतेह किया था। लाहौल के लिंडूर गांव के रहने वाले कर्नल प्रेमचंद जनजातीय संस्कृति और परंपराओं के अग्रणी पक्षधर रहे।
भारतीय सेना के साथ अपने करियर के दौरान उन्होंने भूटान, सिक्किम, नेपाल, गढ़वाल, कश्मीर और पूर्वी काराकोरम की कुछ सबसे ऊंची चोटियों को सफलतापूर्वक फतह किया था। इसलिए उन्हें स्नो टाइगर का नाम दिया गया था। माउंट एवरेस्ट पर 1953 के सफल ब्रिटिश अभियान के प्रमुख लॉर्ड हेनरी हंट ने बाद में प्रेम चंद की उपलब्धि को एवरेस्ट की विजय से कहीं अधिक बड़ा माना जाता है, क्योंकि इसमें जान का खतरा काफी ज्यादा था।
ब्रिगेडियर कुशाल ने जताया दुख
कारिगल युद्ध के हीरो और मंडी के नगवाई निवासी ब्रिगेडियर कुशाल सिंह ने प्रेम चंद के निधन पर दुख जताया और कहा कि हीरो ऑफ कंचनजंगा* कर्नल प्रेमचंद जी के देहांत की खबर सुनकर अत्यंत दुखी हूं। भगवान दिवंगत आत्मा को शांति प्रदान करें और परिजनों को इस दुख की घड़ी को सहन करने की शक्ति दे। कर्नल प्रेमचंद एक बहादुर, ईमानदार, हमेशा सकारात्मक ऊर्जा से भरे हुए नेक इंसान थे। पर्वतारोहण के क्षेत्र में उनके अभूतपूर्व योगदान के लिए उनको हमेशा याद किया जाएगा और वह सदैव युवा पीढ़ी के लिए और हम सबके लिए एक प्रेरणा स्रोत रहेंगे। ओम शांति।