हिमाचल में अब साइबर अपराधियों के खिलाफ दर्ज होगी “जीरो एफआईआर”

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साइबर ठगी का शिकार 1930 टोल फ्री नंबर पर करें शिकायत

आवाज़ ए हिमाचल

ब्यूरो, शिमला। हिमाचल में साइबर अपराधियों के खिलाफ थाने में मामले दर्ज होंगे। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने हिमाचल सरकार को पत्र लिखकर साइबर पोर्टल पर आने वाली शिकायतों को गंभीरता से लेने को कहा है। जटिल व पांच लाख से अधिक की ठगी के मामलों में साइबर अपराधियों के खिलाफ साइबर थानों में जीरो प्राथमिकी दर्ज होगी। अभी हिमाचल में ठगी का शिकार हो रहे लोग साइबर थाने में शिकायतें करते हैं। अधिकांश मामलों में अपराधियों के खिलाफ मामले दर्ज नहीं होते हैं। ऐसे में इन अपराधियों के हौसले बुलंद होते हैं और बार-बार साइबर अपराध को अंजाम देते हैं। अन्य राज्यों की तरह हिमाचल में भी साइबर अपराध के मामलों में बढ़ोतरी हो रही है।

इसके चलते केंद्रीय गृह मंत्रालय ने प्रदेश सरकार को पत्र लिखकर अपराध से निपटने के लिए सकारात्मक कदम उठाने को कहा है। राष्ट्रीय साइबर रिपोर्टिंग पोर्टल पर आने वाली शिकायतों को पंजीकृत किया जाएगा। इसके बाद प्राथमिकी दर्ज (एफआईआर) करने के लिए शिकायतें संबंधित थानों में भेजी जाएंगी। उक्त थाने में जीरो एफआईआर दर्ज कर पुलिस मामलों की जांच करेंगे। अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक नरवीर सिंह राठौर ने कहा कि देश-विदेश में बैठे साइबर अपराधी ऑनलाइन लोगों से संपर्क करते हैं। जब व्यक्ति साइबर अपराधियों के झांसे में फंस जाता है तो उनसे पैसे की मांग की जाती है। उन्होंने कहा कि केंद्रीय गृह मंत्रालय ने ऐसे मामलों में मामला दर्ज करने को कहा है। गौर रहे कि हिमाचल में साइबर के तीन थाने हैं। शिमला, मंडी और धर्मशाला में प्राथमिकी दर्ज होगी।

साइबर ठगी का शिकार लोग टोल फ्री नंबर 1930 और अन्य साधनों से शिकायत कर सकेंगे। जीरो एफआईआर हाल ही में शुरू की गई है। अब जटिल साइबर अपराध और 5 लाख से अधिक ठगी के मामलों में 10 एफआईआर दर्ज की गई हैं। इनमें सबसे ज्यादा धर्मशाला में हैं।

ये है जीरो एफआईआर:- जीरो एफआईआर उसे कहते हैं, जब कोई उसके विरुद्ध हुए संज्ञेय अपराध के बारे में घटनास्थल से बाहर के पुलिस थाने में प्राथमिकी दर्ज करवाए। इसमें घटना की अपराध संख्या दर्ज नहीं की जाती। हमारे देश की न्याय व्यवस्था के अनुसार, संज्ञेय अपराध होने की दशा में घटना की एफआईआर किसी भी जिले में दर्ज कराई जा सकती है। चूंकि यह मुकदमा घटना वाले स्थान पर दर्ज नहीं होता, इसलिए तत्काल इसका नंबर नहीं दिया जाता, लेकिन जब उसे घटना वाले स्थान पर स्थानांतरित किया जाता है, तब अपराध संख्या दर्ज कर ली जाती है। जीरो एफआईआर के पीछे सोच यह थी कि किसी भी थाने में शिकायत दर्ज कर मामले की जांच शुरू की जाए और सबूत एकत्र किए जाएं। शिकायत दर्ज न होने की स्थिति में सबूत नष्ट होने का खतरा होता है। जीरो एफआईआर हो या सामान्य एफआईआर, दर्ज की गई शिकायत को सुनकर/पढ़कर उस पर शिकायती का हस्ताक्षर करना अनिवार्य कानूनी प्रावधान है।

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