इंटरनल विश्व विद्यालय बडू साहिब में जल,कृषि,डेयरी व खाद्य प्रसंस्करण विषय पर कार्यशाला आयोजित

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आवाज ए हिमाचल

जीडी शर्मा,राजगढ़

27 मार्च।इटरनल विश्वविद्यालय, बडू साहिब में सतत अर्थव्यवस्था के लिए जल, कृषि, डेयरी और खाद्य प्रसंस्करण विषय पर आयोजित दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन हुआ।इस दौरान पदमश्री ब्रह्म सिंह ने कहा कि मिट्टी रहित फसलों की खेती की ओर बढ़ना और उत्पादन के लिए अक्रिय पदार्थ का उपयोग करना सतत कृषि का भविष्य है। उन्होंने कहा कि हमें
प्राकृतिक संसाधनों का कम उपयोग करके अधिक उत्पादन प्राप्त करने का लक्ष्य रखना चाहिए।


न्यूयॉर्क के डॉ राज भंडारी और ऑस्ट्रेलिया के प्रोफेसर जोआना ने दैनिक भोजन की खपत के प्रमुख घटक के रूप में बाजरा के उपयोग पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि बाजरा पारिस्थितिक तंत्र को संतुलित करने में मदद करता है। बाजरा उत्पादन के लिए धान के लिए दो हजार मिलीलीटर की तुलना में केवल 300 मिलीमीटर पानी की आवश्यकता होती है, और बाजरा एकमात्र ऐसा अनाज है जो लोगों के लिए तथा किसानों के लिए सर्वश्रेष्ठ है।डॉ दीप्ति गुलाटी ने कहा कि एक तरफ तो भारतीय बच्चों में कुपोषण दुनिया में सबसे ज्यादा है और दूसरी ओर मोटापा या अधिक पोषण एक बड़ी समस्या के रूप में उभर रहा है। उन्होंने यह भी साझा किया कि भारत की 26 प्रतिशत आबादी खाद्य असुरक्षित है, जो न्यूनतम ऊर्जा आवश्यकता के 80 प्रतिशत से कम की खपत करती है।


कलगीधर ट्रस्ट के अध्यक्ष और इटरनल विश्वविद्यालय के उपकुलपति वाईस डॉ देवेंद्र सिंह ने कहा कि इस सम्मेलन का उद्देश्य पानी, डेयरी, कृषि और खाद्य प्रसंस्करण से सबंधित समस्याओं के बड़े पहलुओं के व्यावहारिक समाधान को एक साथ लाना था, ताकि सम्मेलन द्वारा सरकार के स्तर पर कुछ नीतिगत बदलाव लाए जा सकें। इसके साथ ही विश्वविद्यालय व अन्य निजी संस्थानों के छात्र- छात्राओं को बता पाए की पानी, ढेरी, कृषि और खाद्य प्रसंस्करण का सतत विकास ही दुनिया को भुखमरी से बचा सकता है।
इटरनल विश्वविद्यालय के डॉ खेम सिंह गिल कॉलेज ऑफ एग्रीकल्चर द्वारा आयोजित इस सम्मेलन में भारत के अतिरिक्त ऑस्ट्रेलिया, डेनमार्क, मोरक्को के प्रख्यात वैज्ञानिक, शोधकर्ता, शिक्षाविद शामिल हुए। सम्मेलन के शुभारम्भ के मुख्य अतिथि प्रसिद्ध कृषि शोधकर्ता पंजाब सिंह , कुलपति रानी लक्ष्मीबाई केंद्रीय विश्वविद्यालय उत्तर प्रदेश ने इस अवसर पर कहा कि देश में सतत कृषि की समस्याओं के चार मुख्य समाधानों में कृषि उत्पादन से प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण पर ध्यान केंद्रित करना, मिट्टी, पानी आदि जैसे प्राकृतिक संसाधनों की गुणवत्ता सुनिश्चित करना नवीनतम तकनीक ड्रोन आदि का प्रयोग कृषि उत्पादन में करना तथा अधिक से अधिक युवाओं को कृषि से जोड़ना प्रमुख है।


डॉ अशोक पांडे, प्रतिष्ठित वैज्ञानिक ने भारत में पानी की स्थिति के बारे में कुछ उल्लेखनीय तथ्य सांझा किए। भारत दुनिया के सबसे अधिक जल संकट वाले देशों में से एक है, जिसका अर्थ है कि देश की दो-तिहाई आबादी के पास संयुक्त राष्ट्र के अनुसार पीने का पानी नहीं है।
विशिष्ट अतिथि, डॉ स्वरूप के चक्रवर्ती, पश्चिम बंगाल ने कहा कि तीन मुख्य तरीके हैं जिनसे हम स्थायी कृषि प्राप्त कर सकते हैं। उसमें न्यूनतम यांत्रिक मिट्टी की हलचल, फसलों का विविधीकरण और फसल का फसल के साथ स्थायी मिट्टी का आवरण प्रमुख है।
इस दो दिवसीय सम्मेलन के लिए दिल्ली, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, गुजरात, कोयंबटूर, पंजाब, नागालैंड, चंडीगढ़, तेलंगाना, दुबई, मैक्सिको के निजी कृषि विश्वविद्यालयों और संस्थानों के छात्रों ने हिस्सा लिया। जबकिसम्मेलन में भारत, ऑस्ट्रेलिया, डेनमार्क, मोरक्को, अमेरिका के प्रख्यात वैज्ञानिक, शोधकर्ता व शिक्षाविदों ने अपने विचार सांझा किए।

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